Wednesday, January 6, 2016

आरक्षण को लेकर भ्रम और तथ्य

आरक्षण को लेकर भ्रम और तथ्य

January 4, 2016, 12:38 PM IST 

रिजर्वेशन यानी आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जो समय-समय पर देश में चर्चा का मुख्य विषय बन जाता है। देश की ज्यादातर जनता, खासकर नई जनरेशन का अधिकतर हिस्सा भी आरक्षण के बारे में उन्हीं बातों को जानता है जिसे वह मीडिया के माध्यम से सुनता-पढ़ता है।

पिछले दिनों एक मैगजीन में आरक्षण विषय पर पूर्व आईएएस अधिकारी पी.एस. कृष्णन का लेख पढ़ा। 'आरक्षण के तथ्य और मीडिया में गलत बयानबाजी' नाम के इस लेख के अनुसार आरक्षण को लेकर जनता में कई तरह की गलतफहमियां हैं, और कई मीडियाकर्मी भी इस बारे में अल्पज्ञान रखते हैं। इस लेख के कुछ अहम अंश आप सभी से साझा करना चाहता हूं।

भ्रमः इस देश में आरक्षण की शुरुआत वोट के भूखे राजनेताओं ने शुरू की थी।

तथ्यः पहली बार आरक्षण की शुरुआत 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहू जी महाराज ने की थी। फिर 1921 में मैसूर के महाराजा ने आरक्षण लागू किया था। 1921 में ही मद्रास प्रेसिडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल का उत्तरी हिस्सा और कर्नाटक का कुछ हिस्सा आता है।) में जस्टिस पार्टी ने आरक्षण की शुरुआत की थी। यहां गौरतलब है कि ब्राह्मण एकाधिकार को चुनौती देते हुए और उसका दमन करने के वादे के आधार पर ही जस्टिस पार्टी सत्ता में आई थी। इस तरह आरक्षण की शुरुआत राजाओं और भारतीय राजनीतिज्ञों द्वारा की गई थी।

भ्रमः 1950 में भारत के संविधान के बाद आरक्षण की शुरुआत हुई थी।

तथ्यः राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण को डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की पहल पर 1943 में ही लागू किया गया था। उन्होंने यह समझ लिया था कि अंग्रेजों के बाद जिनके हाथों में भारत की बागडोर होगी, वे अनुसूचित जातियों को आरक्षण व अन्य सहूलियत देने में हिचकिचाएंगे। यही कारण था कि वह वायसरॉय के कार्यकारी परिषद में बतौर सदस्य शामिल हुए थे।

भ्रमः संविधान द्वारा सिर्फ दस वर्षों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था।

तथ्यः आरक्षण की तीन श्रेणियां हैः

राज्यों के पदों और सेवाओं में आरक्षण (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थाओं सहित सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 12 की व्याख्यानुसार स्टेट का दर्जा प्राप्त संस्थाएं।)शिक्षण संस्थानों की सीटों में आरक्षण।लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में सीटों का आरक्षण। आमतौर पर जिसे राजनीतिक आरक्षण के रूप में संबोधित किया जाता है।

इनमें से केवल तीसरी श्रेणी के आरक्षण के लिए शुरू में 10 वर्षों का प्रावधान था। जबकि एक और दो श्रेणी के आरक्षण के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी। बहुत सारे विद्वान और ऐंकर तीसरी श्रेणी की 10 साल की समयसीमा को पहले और दूसरे श्रेणी के लिए भी बताते हैं जबकि उनके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी।

भ्रमः आरक्षण का उद्देश्य गरीबी खत्म करना या कम करना है।

तथ्यः संविधान के अनुसार आरक्षण का उद्देश्य गरीबी कम करना या खत्म करना कभी नहीं रहा। बेरोजगारी के समाधान हेतु आरक्षण को एक युक्ति के तौर पर कभी नहीं लिया गया। आरक्षण का उद्देश्य शासन और प्रशासन के ढांचे में असंतुलन को ठीक करना था। इसका उद्देश्य शिक्षा और चुनावी सीटों की उस संरचना को मजबूती प्रदान करना था जो भारतीय जाति व्यवस्था द्वारा निर्मित असंतुलन और असमानता के कारण बना था।

साफ शब्दों में कहा जाए तो शासन व प्रशासन में से उच्च जातियों के एकाधिकार को खत्म करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों/जनजातियों को समान अवसर उपलब्ध करवाने के लिए ही इस आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।

हालांकि इस संबंध में कई लोगों का कहना है कि आरक्षण को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर लागू करना चाहिए, लेकिन संविधान में नहीं निर्देशित होने के कारण आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती है।

यह कॉन्टेंट अंग्रेजी की मास मीडिया मैगजीन के अंक 45 से लिया गया है और यहां उसका संक्षिप्त हिंदी अनुवाद पेश किया जा रहा है। मूल लेखक पी. एस. कृष्णन समाज कल्याण मंत्रालय में पूर्व सचिव रहे हैं और आरक्षण को लेकर इन्होंने बहुत काम किया है। वर्तमान में यह तेलंगाना सरकार में कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त सलाहकार हैं।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts

Blog Archive

Ad

For Donations

यदि डॉ भीमराव आंबेडकर के विचारों को प्रसारित करने का हमारा यह कार्य आपको प्रशंसनीय लगता है तो आप हमें कुछ दान दे कर ऐसे कार्यों को आगे बढ़ाने में हमारी सहायता कर सकते हैं। दान आप नीचे दिए बैंक खाते में जमा करा कर हमें भेज सकते हैं। भेजने से पहले फोन करके सूचित कर दें।

Donate: If you think that our work is useful then please send some donation to promote the work of Dr. BR Ambedkar

Deposit all your donations to

State Bank of India (SBI) ACCOUNT: 10344174766,

TYPE: SAVING,
HOLDER: NIKHIL SABLANIA

Branch code: 1275,

IFSC Code: SBIN0001275,

Branch: PADAM SINGH ROAD,

Delhi-110005.

For inquiries call: 8527533051 sablanian@gmail.com