Monday, February 8, 2016

मनुवादी शोच पर अम्बेडकरवाद हावी

"मनुवादी शोच पर अम्बेडकरवाद हावी"
आज मेरे स्कूल GSSS धोलू (फतेहाबाद) मे गणतंत्र दिवस को सविधान दिवस का रुप देकर इस दिन को पूर्ण रुप से बाबा साहेब को समर्पित कर दिया l हम चाहते थे कि सरस्वती की जगह बाबा साहेब की फोटो पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम शुरू हो लेकिन मनुवादी अध्यापकों और प्राध्यापकों ने ऐसा नही होने दिया जिसका हमने करारा जबाव दिया हंगामा हुआ और इस दौरान हमने उपस्थित ग्राम पंचायत जिसमे कुछ SC के पंच और BC के सरपंच को विश्वास मे लेकर आज के दिन की वास्तविकता और बाबा साहेब के योगदान बारे विस्तार से समझाया और बताया कि बाबा साहेब के सविधान कि बदोलत आज गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है और ये मनुवादी लोग उनकी फोटो तक नही लगवाना चाह्ते जिससे प्रभावित होकर सरपंच महोदय ने पूरी पंचायत को विश्वास मे लेकर हजारों लोगों की उपस्थिति मे मंच पर जाकर ये घोषना कर दी कि ग्राम पंचायत अपने खर्चे पर इस स्कूल के प्रागण मे बाबा साहेब की प्रतिमा की स्थापना करवायेगी l बाबा साहेब और समाज की ताकत ने हमे होंसला दिया और आने वाले कुछ दिनो मे मेरे (Govt.School) मे बाबा साहेब की बहुत बड़ी प्रतिमा होगी 
🙏🏻जय भीम 🙏🏻
सुखदेव भुक्कल

नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती का हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौरा

नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती का हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौरा ।
28 जनवरी को नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर अशोक भारती ने रोहित वेमुला की मौत पर चल रहे आंदोलन को समर्थन और आंदोलन की भावी रणनीति बनाने के लिए हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौर किया। इस दौरे के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारियों की असोसीएशन, टीचिंग स्टाफ़ की असोसीएशन व छात्र आंदोलन में शामिल विभिन्न विद्यार्थी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मुलाक़ात की। 
उन्होंने विश्वविद्यालय में आंदोलनकारियों को सम्बोधित किया और अनेकों TV चैनलों को सम्बोधित किया।
उन्होंने आंदोलनकारी विद्यार्थियों, अध्यापकों और कर्मचारियों को सम्बोधित करते हुए विद्यार्थियों और अध्यापकों की माँग का पूरा समर्थन करते हुए निम्नलिखित माँगे कीं:
1. द्रोणाचार्य पुरस्कार का नाम बदलकर रोहित वेमुला पुरस्कार किया जाए। 
2. सरकारी कोष से चलने वाले प्रत्येक कॉलेज या विश्वविद्यालय को मिलने वाले वित्तीय संसाधनों पर तब तक रोकें जाए जब तक वह टीचिंग और नान-टीचिंग पदों में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों का कोटा पूरा ना कर दें।
3. उच्च शिक्षा की व्यवस्था का पूर्ण ओवरहॉल हो और इसे अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ग्रामीण विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप ढाला जाए।
4. नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रोहित वेमुला
के नाम पर विद्यार्थी नेताओं के लिए एक सालाना पुरस्कार की स्थापना की घोषणा की जिसके नगद राशि, एक सम्बोधन और एक स्मृति चिन्ह देने की घोषणा की। प
उन्होंने हैदराबाद में दलितों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों से भी मुलाक़ात की। और एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स को भी सम्बोधित किया।
इस अवसर के कुछ फ़ोटो आपके साथ साझा कर रहे हैं।"""""""

Thursday, February 4, 2016

पत्रकारिता के बड़े संस्थान IIMC में भी सुरक्षित नहीं हैं दलित !

पत्रकारिता के बड़े संस्थान IIMC में भी सुरक्षित नहीं हैं दलित !



नई दिल्ली. नई दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन (IIMC) में जातीय भेदभाव से जुड़ा चौंकाने वाला मामला सामने आया है. दलित-आदिवासी कम्युनिटी से संबंध रखने वाले कुछ स्टूडेंट्स की शिकायत के बाद IIMC प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.
 
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक IIMC के ही कुछ सवर्ण छात्रों पर आरोप है कि उन्होंने संस्थान में मौजूद SC/ST कम्युनिटी के छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव किया. पूरा मामला हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या से शुरू हुआ. 
 
रोहित वेमुला आंदोलन को सपोर्ट करने की वजह से शुरू हुई छींटाकशी
 
पूरे देश में रोहित के पक्ष में जारी आन्दोलन को IIMC के भी SC/ST छात्रों ने सपोर्ट करना शुरू किया जो संस्थान के ही कुछ सवर्ण छात्रों को बुरा लगा. दलित स्टूडेंट्स का आरोप है कि उनके ही कुछ सवर्ण साथियों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिये उन पर अभद्र कमेन्ट किये.
 
छात्रों का आरोप है कि मामला सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक ही नहीं रहा. इन सवर्ण स्टूडेंट्स ने कैंपस के अंदर भी अभद्र और जातिवादी कमेंट्स शुरू कर दिए. इसी ग्रुप के एक लड़के ने रिजर्वेशन को लेकर फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट लिख दी जिससे मामले ने तूल पकड़ लिया.
 
एससी-एसटी आयोग ने मामले पर आईआईएमसी से जवाब मांगा
 
इसके बाद दलित समुदाय के स्टूडेंट्स ने SC/ST कमीशन से इसकी लिखित शिकायत कर दी. कमीशन ने इस बाबत जब IIMC से जवाब मांगा तो पता चला कि संस्थान में अभी तक कोई SC/ST सेल भी नहीं है. 
 
फिलहाल आयोग की दखलंदाजी के बाद IIMC ने मामले की जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. जिस छात्र पर आरोप लगा है उसने IIMC प्रशासन से लिखित में माफ़ी मांग ली है. हालांकि SC/ST छात्रों की मांग है कि दोषी लड़के और उसके साथियों को संस्थान से रेस्टिकेट कर उचित कार्रवाई की जाए.

🙏🌷 विचार करीये व जान कर मान लिजीए ।देश के लोकतांत्रिक ढांचे का चौथा खम्भा जहाँ से प्रक्षिक्षण लेकर आरहा हे वहाँ सारे द्रोणाचार्य बैठे हें ।यह लोग वहाँ से तैयार होकर आरहे हें कभी हमारे हकों के लिए नहीं लड सकते कभी हमाी बात दिल से नहीं रख सकते यह हे असलियत ।हमें इनकी हर खबर पर शंका होनी चाहिए ।🙏🌷 जय मुलनिवासी

द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ

अब तक साइंस यानी केमिस्ट्री, फिजिक्स और मेडिसिन के लिए 583 नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं. भारत को सिर्फ चार यानी 04 मिले हैं. क्या इसका कोई दायित्व उन सवर्ण पुरुष प्रोफेसरों पर नहीं है, जो भारत के उच्च शिक्षा केंद्रों पर 90 से 95% तक कब्जा जमाए बैठे हैं?
भारत में दुनिया की 17%आबादी रहती है. लेकिन उसके विशाल हिस्से को ज्ञान, विज्ञान के केंद्रों से दूर रखा गया है. ऐसा करने वाले लोग देशद्रोही हैं. ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में विविधता का विरोध करने वाले द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ!
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विचारार्थ :
ब्राह्मणवादी मीडिया ने दिल्ली पुलिस के लाठी चार्ज के वीडियो को इतने धुआंधार तरीके से क्यों दिखाया?
क्योंकि...
1. रोहित वेमुला मामले में शुरुआती और जानबूझकर की गई अनदेखी की वजह से ब्राह्मणवादी मीडिया की साख शून्य पर पहुंच चुकी थी. दिल्ली और देश के ज्यादातर शहरों में आंदोलनकारियों ने अपने कार्यक्रमों के मीडिया इनविटेशन तक नहीं दिए. प्रेस रिलीज नहीं दी. खोई साख को फिर से हासिल करने के लिए मीडिया को कुछ तो करना था.
2. पुलिस पिटाई का प्रश्न अगर ज्यादा उभरता है, तो यूनिवर्सिटीज में जाति उत्पीड़न का सवाल पीछे जा सकता है. ऐसा हुआ तो मीडिया को बुरा नहीं लगेगा.
3. मनुस्मृति ईरानी के इस्तीफे की मांग तकलीफ देती है. पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे की मांग से किसे दिक्कत है? आखिर में चार कॉन्स्टेबल को लाइन हाजिर ही तो करना पड़ेगा. साथ में थानेदार का निलंबन... हो जाएगा.
4. लेकिन द्रोणाचार्य का क्या होगा? वह तो किसी और रोहित वेमुला का शिकार कर रहा होगा. मूल प्रश्न तो द्रोणाचार्यों से मुक्ति पाने का है. यह आंदोलन तो रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का है. यूनिवर्सिटीज में जातिगत भेदभाव खत्म करने का है.
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आज से 30 दिन पहले रोहित वेमुला क्या सोच रहा था?
उस समय जबकि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय तथा आलोक पांडे और अप्पा राव के षड्यंत्रों की वजह से उसके यूनिवर्सिटी में सामाजिक बहिष्कार का आदेश हो चुका था, तो उसके मानस में क्या चल रहा था?
3 जनवरी, 2016 को रोहित वेमुला ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर माता सावित्रीबाई फुले की कविता लगाई, जो उसे उसके मित्र मुंसिफ भाई ने दी थी. इसमें लोगों से आह्वान है कि पेशवाई के खात्मे के बाद उनके लिए पढ़ने लिखने के मौके खुल गए हैं, उनका लाभ उठाएं.
रोहित ने सावित्रीबाई फुले की 185 वीं जयंती पर आदिवासी, दलित, ओबीसी, सिख, ईसाई, मुसलमानों के हाशिए पर होने और उनके संघर्षों की बात लिखी. उसने खास तौर पर महिला अधिकारों की बात की.
रोहित वेमुला के न रहने पर जो चौतरफा शोक है, उसे आप इस तरह से समझ सकते हैं. वह मुकम्मल इंसान और सच्चा नागरिक था.
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रोहित वेमुला मुद्दे पर चल रहे आंदोलन को लगातार 16 दिनों तक टिकाए रखने और शिक्षा केंद्रों के ब्राह्मणीकरण को केंद्रीय सवाल के तौर पर बनाए रखने में बामसेफ, मूलनिवासी संघ और भारतीय विद्यार्थी मोर्चा की बेहतरीन भूमिका रही है.
कस्बों और तहसील तक फैले देशव्यापी संगठन के बूते ये लोग जमीनी स्तर पर RSS जैसे संगठनों को चुनौती पेश कर रहे हैं. ये संगठन हजारों की संख्या में प्रदर्शन कर चुके हैं. इनके बगैर यह मुद्दा राष्ट्रीय न बन पाता.

रोहित वेमुला के फेसबुक प्रोफाइल पर आप पायेंगे कि वह बामसेफ से प्रभावित था और अक्सर उससे संबंधित स्टेटस शेयर करता था.
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एक जाति के पुरुषों के असंतुलित वर्चस्व यानी दबदबे से भारत की उच्च शिक्षा को जहां तक पहुंचना था, वहां तक वह पहुंच चुकी.
जितने कम नोबेल पुरस्कार आप ला पाए, वह हम देख चुके हैं. वर्ल्ड रैंकिंग में हमारी यूनिवर्सिटीज को जितना नीचे जाना था, वे जा चुकी हैं, पेटेंट का जितना अकाल पड़ना था, पड़ चुका....इसलिए अब हटिए.
बाकियों को स्पेस दीजिए. कंपिटीशन का दायरा बढ़ने दीजिए. हर जाति, बिरादरी से टैलेंट को आने दीजिए. एडजस्ट करना सीखिए.
कब तक रोहित वेमुलाओं को मारते रहेंगे. अब चलिए भी. बहुत देख लिया आप लोगाें का टैलेंट.
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IIT के डायरेक्टर्स की कमेटी ने ट्यूशन फीस में 200% बढ़ोतरी की सिफारिश की है. आज के इकोनॉमिक टाइम्स में पहले पन्ने की खबर है... ये सरकार है या जल्लादों का गिरोह? और ये डायरेक्टर हैं या छात्रों के दुश्मन? फेलोशिप देंगे नही, फीस तीन गुना कर देंगे. टॉपर बच्चे का सामाजिक बहिष्कार कर देंगे. लाइब्रेरी नहीं जाने देंगे. ये किस तरह के लोग हैं?

अब जबकि सरकार जबर्दस्ती जाति बता रही है, तो पूछ ही लिया जाए कि ये सारे IIT डायरेक्टर लोग कौन जात हैं? आखिर किस जाति के लोग इस कदर शिक्षा और स्टूडेंट विरोधी होते हैं?
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ध्यान रहे कि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय के इस्तीफे और तमाम विश्वविद्यालयों में SC, ST, OBC कोटे के खाली पड़े शिक्षक पदों को भरने तथा कैंपस में जातिवाद खत्म करने का आंदोलन, दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल और थानेदार की बर्खास्तगी का आंदोलन न बन जाए...
ब्राह्मणवादी मीडिया ठीक यही चाहेगा.

यह शिक्षा क्षेत्र के लोकतांत्रिकरण का आंदोलन है. यह यूनिवर्सिटीज में सवर्ण पुरुष वर्चस्व और ब्राह्मणवाद से मुक्ति का आंदोलन है. यह रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का आंदोलन है.
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दक्षिण भारत में बहुजन समाज पार्टी, BSP की चल रही न्याय यात्रा के वैन पर आ गया है रोहित वेमुला...और आपको लग रहा था कि बच्चे हैं, मसलकर खत्म कर दोगे... द्रोणाचार्यों को महंगा पड़ेगा.

धरती पर गिरा यह खून बहने की जगह जम गया है. पता नहीं कि यह कितने रूप में कहां कहां नजर आएगा.
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नरेंद्र मोदी के रोहित वेमुला के लिए बहाए आंसुओं पर जब संघी भक्तों ने भरोसा नहीं किया और मां भारती के लाल को लेकर तमाम तरह के अपशब्द, गाली गलौज करते रहे, तो हम कैसे मान लें कि मोदी के आंसू असली थे.
मोदी के आंसू पर न तो सुषमा स्वराज ने भरोसा किया और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने. ये सब मां भारती के लाल की जाति खोज रहे हैं.

मोदी के आंसू नकली हैं! यकीन न हो तो जाकर किसी भी संघी से पूछ लीजिए.
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नागपुर में "रोहित वेमुला फाइट्स बैक" रैली करने वालों ने तय किया कि मीडिया को कोई प्रेस रिलीज नहीं दी जायेगी. अगले दिन अखबारों ने लिखा - साढ़े तीन किलोमीटर लंबी रैली... मीडिया ने मजबूर होकर कवरेज दिया. शहर के सारे अखबारों को बड़ी खबर छापनी पड़ी.
इस आंदोलन को न तो मीडिया ने शुरू किया है और न ही चैनलों और अखबारों की अनदेखी या साजिशों से यह थमेगा. भारत में सोशल मीडिया युग का यह पहला राष्ट्रीय आंदोलन है. ब्राह्मणवादी मीडिया अब अपनी साख की चिंता करे.

आप सभी हैं पत्रकार!
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रोहित वेमुला को लेकर इतने दिनों से इतना बड़ा देशव्यापी आंदोलन चला कौन रहा है? इसके पीछे कौन है?
इस सवाल का पूरा नहीं, लेकिन थोड़ा सा जवाब मेरे पास है. आज रात आपमें से ज्यादातर लोग जब अपनी डायनिंग टेबल पर डिनर कर रहे होंगे, तो लगभग 30 भीमसैनिक दिल्ली की ठंड में एक बस्ती में जुलूस निकालकर लोगों को रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बारे में बता रहे थे. इनमें सभी PhD और MPhil स्टूडेंट्स हैं. इनमें कई आगे चलकर प्रोफेसर और ब्यूरोक्रेट बनेंगे. लेकिन आज वे पढ़ाई के साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं. आंदोलन में इनका भी दम लगा है. हजारों लोग, जो तमाम विचारधारा के हैं, उनके दम से चल रहा है आंदोलन.
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श्री अजित डोवाल,
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, 
भारत सरकार.
प्रिय मिस्टर डोवाल,
मुझे मालूम है कि आप इन दिनों काफी व्यस्त हैं. आपके कार्यालय में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का जो स्पेशल सेल खुला है, वह काफी तत्परता से काम कर रहा है. बधाई.
लेकिन आप शायद भूले नहीं होंगे कि आपका मुख्य काम देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित करना है. मैं आशा करता हूं कि आप सांप्रदायिक शक्तियों पर खास नजर रख रहे होंगे, जिनसे राष्ट्रीय एकता को सबसे बड़ा खतरा है. पश्चिम उत्तर प्रदेश, मालदा और मध्य प्रदेश के धार पर स्वाभाविक रूप से आपकी पैनी नजर होगी क्योंकि ये इलाके लगातार गलत कारणों से चर्चा में हैं. उम्मीद है कि आप राष्ट्र की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे ताकि देश में अमन चैन बना रहे.
वैसे, आपके दफ्तर से जिस तरह रोहित वेमुला की जाति की खबर लीक होकर मीडिया में आई, उससे मैं चिंतित हूं. देश की सुरक्षा जिस दफ्तर के जिम्मे हो, वहां से सूचनाओं का लीक होना अच्छी बात नहीं है.
आपका,
एक आम भारतीय नागरिक
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क्यों सुषमा जी,
कोई आदमी प्रधानमंत्री की जाति का हुआ तो सरकार मार डालेगी?

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दफ्तर में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का स्पेशल सेल बना है. उनसे कहकर नरेंद्र मोदी जी के कास्ट सर्टिफिकेट की भी जांच करवा दीजिए. 2002 में ओबीसी लिस्ट में जो बदलाव हुए थे, उसकी भी जांच हो जाए?
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 बुद्ध और अशोक शाक्यवंशीय, कबीर जुलाहा, फुले माली, शाहूजी महाराज कुनबी मराठा, पेरियार ओबीसी, संतराम कुम्हार, नारायणा गुरु इझावा, कयूम अंसारी पसमांदा, ललई सिह यादव, कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़े, रामस्वरूप वर्मा कुर्मी, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, सोनेलाल पटेल कुर्मी... ये सब और ऐसे सैकड़ों लोग बहुजन नायक हैं. बाबा साहेब की परंपरा इन सबसे जुड़ती है, इसलिए उनका नाम मैं सबसे पहले लेता हूं.
संघी लोग हिसाब लगाते रहें कि कौन दलित है और कौन ओबीसी. बहुजन तो सवर्ण वीपी सिंह को भी आदर से याद करता है. ये झगड़ा इस बार लग नहीं पा रहा है. क्यों संघियों, दिक्कत हो रही है?
ब्राह्मणवादियों ने जाति न बनाई होती, तो ये सारे महापुरुष इंसान पैदा हुए थे. ये महापुरुष इसलिए हैं क्योंकि इन्होंने तुम्हारी बनाई जाति व्यवस्था को चुनौती दी. रोहित वेमुला इसी परंपरा का इंसान था.
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मुस्लिम औरतें हाजी अली दरगाह में प्रवेश के अधिकार के लिए सड़कों पर उतरीं। भक्तों को हार्ट अटैक वाच पर रख देना चाहिए। 
Muslim women protests against Haji Ali Dargah ban on women devotees. Bhakts must be put on Heart Attack Watch.
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शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश पर अड़ी महिला साथियों को पुलिस ने रोका। आइये, इस्लाम में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की कड़ी निंदा करते हैं। :)
Women attempting to enter ShaniShingnapur temple stopped by the Police. Time to condemn the way women are treated in Islam.
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पद्मविभूषण 10 को , जिसमें सवर्ण 10, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 0
पद्मभूषण 19 को जिसमें सवर्ण 17, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 2
पद्मश्री 83 को जिसमें सवर्ण 79, पिछड़ा 1, दलित 0, अल्पसंख्यक 3
क्या यही है, सबका साथ- सबका विकास?
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बंदारू दत्तात्रेय की जाति के बारे में सरकार राष्ट्र को बता चुकी है. इसलिए, रहा सहा पर्दा भी अब सरकार को उठा ही देना चाहिए.
इन दिनों कास्ट सर्टिफिकेट जांचने की जिम्मेदारी संभाल रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की भी एक जाति होगी. किस जाति के हैं वे? चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर आलोक पांडे की भी तो कोई जाति है. वह क्या है? कुलपति अप्पा राव की भी तो कोई जाति होगी? सामाजिक बहिष्कार का आदेश लिखने वाले विपिन श्रीवास्तव? मनुस्मृति ईरानी? यूजीसी के चेयरमैन वेदप्रकाश? केंद्रीय शिक्षा सचिव? इन सबकी भी तो कोई जाति है..... रोहित की जाति है, तो ये सब कौन जात हैं?
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दिल्ली मैट्रो की सच्ची घटना
जय यौद्धेय . मेरे एक दोस्त राकेश नाहर , जाति जाटव(चमार) ने मुझे दिनांक 27 जनवरी की अपनी आपबीती सुनाई , जब वह दिल्ली मेट्रो में इंदरलोक से पीरागढ़ी जाने के लिए मेट्रो में घुसा ही था तो उसे कुछ अरोड़ा / खत्रिओं (लाहौरी हिंदू ) के लड़के एक 80 वर्षिये बजुर्ग जाट के साथ बदतमीजी करते और उसे जोर जोर से धमकाते नजर आये तो मेरे इस दोस्त से नहीं रहा गया , इसने इन लाहौरी हिंदुओं से पूछा कि ये इस बज़ुर्ग को क्यूँ परेशान कर रहे हैँ तो इन्होंने कहा कि यह बुड्ढा लाइन में खड़ा ना होकर सबसे आगे खड़ा हो गया था तो इस पर मेरे इस दोस्त ने कहा कि तो इसमें इस बज़ुर्ग ने क्या गुनाह कर दिया ,उल्टा तुमको ही इस बज़ुर्ग की उमर का लिहाज करके इसको जगह देनी चाहिये थी .
इस बात पर ये लाहौरी हिंदू मेरे दोस्त से उलझने लगे ,जिस पर मैट्रो में खड़े कुछ और हरयाणा के जाटोँ ने मेरे इस दोस्त का पक्ष लेते हुए इन लाहौरी रिफ्यूजी हिंदूज को धमका कर शांत करवाया .
कुछ देर के बाद शांति होने पर ये रिफ्यूजी आपस में बात करने लगे और कहने लगे कि हरयाणा का आदमी बदमाश होता है ,जिस पर नजदीक खड़े एक उड़ीसा के व्यक्ति ने कहा कि ऎसा नहि है क्योँकि हमने उड़ीसा में हरयाणा के आर्मी के जवानों के साथ काम किया है ,उलटा हरयाणा का आदमी तो बदमाशों की बदमाशी खतम करने वाला होता है . इस दौरान मेरे इस दोस्त ने इन रिफ्यूजी अरोरा /खात्रीओं से पुछा की ये कहाँ उतरेंगे और ये कहाँ से हैँ , तो इन लाहौरी हिंदूज़ ने बताया कि ये पीरागढ़ी में उतरेंगे और वहां से हरयाणा जायेंगे और ये हरयाणा से ही हैँ. इस पर वहाँ मैट्रो में खड़े सभी लोग हंसने लगे .
इसके बाद यह जाट बज़ुर्ग जिसको मुंडका उतरना था मेरे दोस्त को धन्यवाद देने लगा जिस पर मेरे इस चमार मित्तर ने कहा कि यह तो हमारा फ़र्ज़ है .
इस पर इस बुजुर्ग ने बहुत काम की बात कही कि बेटा हमारे जवान तो बस में , मैट्रो में किसी भी अरोड़ा /खत्री बज़ुर्ग को अपनी सीट दे देते हैँ , जबकि मैंने आज तक किसी भी अरोड़ा / खत्री के लड़के को किसी गाँव के बज़ुर्ग आदमी को अपनी सीट देते नहीं देखा और ये लोग जिस हरयाणा का खा रहे हैँ ,उसी को गालियां देते हैँ. यह नमकहरामी की हद्द है .
मेरे दोस्त को पीरागढ़ी उतरना था ,वह उतर गया . साथिओं जिस दिन जाट और चमार में एक दुसरे के लिए यह आपसदारी की भावना पैदा हो
यूनियनिस्ट मिशन इसी हमारे पुराने भाईचारे को फिर से एक करने में लगा हुआ है .
आपसे निवेदन है की इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें .
_मनोज दूहन , व्हाट्सएप्प @ 9728888931
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हालात ऐसे हैं कि नाम में मिश्रा, तिवारी,पांडे,द्विवेदी,त्रिवेदी, चतुर्वेदी, वाजपेई,शुक्ला, दीक्षित, ओझा,पाठक,
लगा हो तो आप यूपी में लोकायुक्त बन सकते है
और अगर आप अहीर , कुर्मी,काछी,लोधी,नाई,बढ़ई,लोहार,कुम्हार ,सुनार,कलार,कलवार,चमार,पासी,तेली,भंगी हैं तो आप कभी भी यूपी का लोकायुक्त नहीं बन सकते।।
जनेऊधारी यूपी में मनुस्मृति का शासन लाने की योजना पर काम कर रहे हैं।।लोकायुक्त की नियुक्त इसकी शुरूआत है।।
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डर तो लग रहा है सरकार को भी और सरकार के बाप आरएसएस को भी। तभी तो ढेर सारे मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक रोहित वेमुला की जाति बताने में लगे हैं। पुलिस के साथ घुसकर आरएसएस के गुंडे प्रदर्शन कर रहे निहत्थे एससी एसटी ओबीसी बच्चे-बच्चियों को पीट रहे हैं। कुछ बड़ी उथल पुथल होने की आशंका इनको हो रही है तो बेवजह नहीं। जाति से काम नहीं चला तो मामला पुलिस ज्यादती का बनाने की कोशिश एक और पैंतरा है। पर, कुछ भी कर लो, कुछ बड़ा तो होने वाला है।
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मोदी सरकार का क्रांतिकारी फ़ैसला।
डीज़ल चार पैसे और पेट्रोल पाँच पैसे सस्ता।
इस तरह से हर महीने अपनी कार में डीज़ल डलवाने के बाद मुझे पूरे पचास रूपए सोलह पैसे की बचत हो जाएगी। 
इन पैसों को मैं जनधन योजना वाले बैंक अकाउंट में डाल कर उसका ब्याज खाऊँगा। पार्टी करूँगा। मूवी देखूँगा। जो बच जाएगा उससे भाजपाईयों के लिए पटरी वाली निक्कर ख़रीदूँगा।
फिर भी कुछ पैसे बचते हैं तो स्टार्टअप इंडिया के तहत मुर्ग़ी पालन करूँगा। गाय भैंस तो पाल नहीं सकता।
फिर कुछ पैसा बचेगा तो गैस सब्सिडी छोड़ने का विचार करूँगा। इसके बाद भी कुछ बच जाता है तो अच्छे दिनों का वादा करने वालों की *#%# में डाल दूँगा।
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हैदराबाद से दिल्ली। दिल्ली से बंबई, नागपुर, बनारस, इलाहाबाद, पटना, जयपुर...यह आग नहीं थमने वाली साहेब। चलाओ लाठी। मारो गोली। लगाओ आग। फैलाओ अफवाह। अंबेडकरवादी, मानवतावादी, संविधान वादी, मार्क्सवादी, उदारवादी, नारीवादी....और सबसे अधिक देश से प्यार करने वाला आम नागरिक अब विपक्ष है। इसे मैनेज करना संभव नहीं आपके लिए।
कैंपसों को नहीं छेड़ा है तुमने संघियों अपनी क़ब्र खोदी है। विद्रोही छात्रों पर पड़ी एक एक लाठी तुम्हारी ताबूत का आख़िरी कील साबित होगी। ये डरने वाले बंदे/बंदियाँ नहीं हैं।
जय भीम 
इंकलाब ज़िंदाबाद 
हमारी जान - भारतीय संविधान

Monday, February 1, 2016

मंत्रालय बार-बार रिमाइंडर भेजकर विश्वविद्यालय पर रोहित वेमुला पर कार्रवाई करने का दवाब बना रहा था

Written by : नेशनल दस्तक ब्यूरो
Date : 2016-01-20

नई दिल्ली। दलित छात्र रोहित खुदखुशी मामले में एक अहम जानकारी सामने आई है, रोहित वेमुला के निलंबन के लिए मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्रालय से कई बार पत्र लिखे गये थे और हैदराबाद विश्वविद्यालय पर दबाव बनाया गया था। मंत्रालय बार-बार रिमाइंडर भेजकर विश्वविद्यालय पर रोहित वेमुला पर कार्रवाई करने का दवाब बना रहा था। हालांकि मंत्रालय इन आरोपों का खंडन कर रहा है। छात्र खुदकुशी मामले पर जाने-माने साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने अपनी डी-लिट की उपाधि भी वापस कर दी है। यह उपाधि उन्हें हैदराबाद विश्वविद्यालय से मिली थी।
 
रोहित ने रविवार को होस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। मंत्रालय का खंडन तब सामने आया, जब यह बात सामने आई है कि मंत्रालय ने केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय द्वारा 17 अगस्त 2015 को लिखे पत्र को लेकर चार रिमांइडर सहित पांच पत्र विश्वविद्यालय को लिखे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रवक्ता घनश्याम गोयल ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि मंत्रालय ने विश्वविद्यालय पर किसी प्रकार का दबाव डाला था। मंत्रालय ने केवल सेंट्रल सेक्रेटेरियट मैनुअल ऑफ ऑफिस प्रोसीजर का पालन कर रहा था। गोयल आगे कहते कि प्रक्रिया के मुताबिक अगर किसी वीआईपी का अनुमोदन होता है तो इस बात का 15 दिनों में संज्ञान लेना होता है और अगले 15 दिनों में उसका जवाब देना होता है। चूंकि विश्वविद्यालय की ओर से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद ही मंत्रालय की ओर से रिमांइडर भेजे गए थे।

सूत्रों के मुताबिक  मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी को पहला पत्र 3 सितंबर 2015 को भेजा था। इसके बाद 24 सितंबर, 6 अक्टूबर, 20 अक्टूबर और 19 नवंबर को रिमाइंडर भेजे गए थे। अधिकारियों ने बताया कि यूनिवर्सिटी ने आखिरकार 7 जनवरी को अपना जवाब भेजा। विश्वविद्यालय में दो छात्र संगठनों के बीच झड़प के बाद दत्तात्रेय ने एचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा था। झड़प में भाजपा से संबंधित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक छात्र नेता सुशील कुमार पर हमला किया गया था।

Friday, January 29, 2016

AIIMS ने अपने इतिहास में पहली बार अपने एक टीचर/प्रोफेसर/डॉक्टर को टर्मिनेट यानी बर्खास्त किया है

AIIMS ने अपने इतिहास में पहली बार अपने एक टीचर/प्रोफेसर/डॉक्टर को टर्मिनेट यानी बर्खास्त किया है. वह भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के सीधे और लिखित हस्तक्षेप के कारण. 

क्या आप उनसे मिलना नहीं चाहेंगे? अगर आप चाहते है कि कोई और रोहित वेमुला न बने, तो आपको उनसे मिलना चाहिए. तमाम बड़े अखबारों में यह तो छप चुका है कि एम्स के प्रोफेसरों ने इस बर्खास्तगी का विरोध कर दिया है. अब आगे पढ़िए. 

पहले यह जानिए कि उन्हें टर्मिनेट किसने किया. यह आदेश इसी साल 6 जनवरी को जारी हुआ है. रोहित के केस की ही तरह यहां सीधे केंद्रीय स्तर से हस्तक्षेप है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री पंडित जे. पी. नड्डा इन्वॉल्व हैं. पत्र में लिखा है कि स्वास्थ्य मंत्री की सहमति से आदेश जारी किया जा रहा है. पत्र पर डायरेक्टर एमसी मिश्रा और डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन वी. श्रीनिवासन के दस्तखत हैं. शिकायत मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड एस. के. शर्मा की है. अब इन बेचारों का क्या दोष, अगर ये सभी एक ही जाति के हैं. पत्र में बर्खास्तगी का कोई कारण नहीं बताया गया है. 

अब मिलिए डॉक्टर और एसिस्टेंट प्रोफेसर कुलदीप से. किंग्स जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से MBBS हैं. सर्जरी और ऑर्थोपेडिक्स में स्पेशल ऑनर मिला. 2002 में ऑल इंडिया पीजी एंट्रेंस के भारत में 8th रैंकर हैं. इसलिए अनरिजर्व कैटेगरी से देश के श्रेष्ठ मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में MD में एडमिशन मिला. एम्स में सीनियर रेजिडेंट रहने के दौरान आउटस्टैडिंग सर्विस का सर्टिफिकेट मिला. अभी एम्स में एचआईवी संक्रमण के टॉप डॉक्टर होने के नाते क्लिनिक हेड कर रहे थे. प्रतिभा को देखते हुए, मेडिसिन डिपार्टमेंट का हेड बनना तय था. वे इंडियन मेडिकल प्रोफेशनल्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी भी हैं. 

बस फिर क्या था, ब्राह्मणवादी गिरोह उन्हें निपटाने में जुट गया और जब निकाला तो कारण बताने की औपचारिकता भी नहीं निभाई. क्योंकि कोई कारण है भी नहीं. जो कारण है, वह आप फोटो में देख सकते हैं. 

लेकिन वे डॉक्टर कुलदीप को चुपचाप निगल नहीं पायेंगे. एम्स के प्रोफेसरों की एसोसिएशन ने 11 जनवरी को डॉयरेक्टर मिश्रा का घेराव किया. जनहित अभियान के साथी Raj Narayan भी जुट गए हैं. इस बारे में सारे डॉक्यूमेंट्स वे अपलोड करेंगे.

अगर इन वजहों से डॉक्टर कुलदीप कल को अमेरिका या यूरोप चले जाते हैं तो मरीजों और देश को हुए नुकसान की भरपाई नड्डा करेंगे कि मिश्रा?
~Dilip C Mandal~

Thursday, January 28, 2016

MURDER .... MURDER.... MURDER......

MURDER .... MURDER.... MURDER......
I would like to inform to all of my friends about ROHIT VEMULA's life.
Rohit Vemula, PHD SCHOLAR (President of AMBEDKARITE STUDENT ASSOC.) has neither done suicide nor thought to finish his own life. In fact he has been killed by AVBP's students by nylon rope and they hanged Rohit on the fan in his room and also kept suicide note with his body.
This is How & what are the logics and that are:
1) Watch carefully conversation between ROHIT & AVBP students just before ABVP killed ROHIT, how roudly they behaved with Rohit. And a dress code is also matching with his death body & vedio of communication with ABVP
2) If u see a photograph (plz refer vedio) of Rohit's death body, his both hand fingers are closed like when we make a hand punch where that should have been opened and also his tongue was not that much out of his mouth as it should have been.
In this matter When I consulted one of my friend Mahendra who is a photographer and done photography of many suicide cases with many policemens. And he mentioned to me and also it is a scientific logic that when a person hanged himself / herself then his / her hand fingers becomes loose always opened and tongue about 40% is coming out of mouth.
3) If u all see carefully, it has been shown that there is a blue cloth tied on the fan on which Rohit hanged himself but in actual u all will see that there are symbol of nylon rope around his neck. And this blue cloth has been tied by ABVP students after they killed Rohit...
4) ABVP student namely SUSHILKUMAR says that ROHIT VEMULA came with 30 to 40 students in his hostel room and they all beat him and they forcefully made Sushilkumar to write a EXCUSE LETTER against his complaint. 
Then question is (a) A person like ROHIT who is interested in riots / beating the innocent people, can he do suicide / can he finish his own life? (b) when Rohit can make a mop of 30 to 40 people, can he go in depression?
5) If ROHIT wanted to finish his life in depression then he would have been finished it when he has been restrigated from the university bcaz his restrigation was the main point of his depression as his economic background was not strong.
6) This is very Practicle that any person who has studied all Dr. B. R. Ambedkar's literature and following Ambedkars ideology in personal life, then he / she will never go for suicide instead of that he / she get ability to fight for their own & social problems till his / her natural or artificial death....
7) ROHIT was not a common student. He was a scholar and motivated himself by Dr. B. R. Ambedkar tackled all the the bad periods and reached upto his PHD which is a higher qualification (Expected by Dr. B. R. AMBEDKAR for depressed classes).
8) ROHIT was a SCIENCE & TECHNICAL SCIENCE PHD SCHOLAR who will not make any mistakes / erasing work in suicide note which is fake suicide note made by ABVP students.
9) Last but not least a Scholar running his life with the ideologies of Great people like GAUTAM BUDDHA, DR. B. R. AMBEDKAR, MATA RAMAI AMBEDKAR, MAHATMA JYOTIRAO PHULE, MATA SAVITRIAAI PHULE, SANT KABIR, PERIYAR SWAMI etc. Will never go for suicide and finish his life. In fact he / she will for own n for others....

Wednesday, January 27, 2016

रोहित वेमुला मौत:परत दर परत पूरी कहानी

रोहित वेमुला मौत:परत दर परत पूरी कहानी, पूरा ऐंगल

Friday, January 22, 2016, 12:22BUREAUCRACY, CORPORATE, HEADLINE, OTHER'S VOICE2 comments

 वरिष्ठ पत्रकार निखिल आनंद दलित छात्र रोहित वेमुला से जुड़े विवाद, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी व बंडारु दत्तात्रय की भूमिका और  रोहित की मौत की परत-दर परत खोल रहे हैं.

रोहित चक्रवर्ती वेमुला उर्फ रोहित नाम का 26 साल का युवा फाँसी के फंदे पर झुलकर जान दे देता है। इस घटना के बाद दो धाराओं में बहस चल पड़ती है जो देश की सामाजिक पृष्ठभूमि को जानने- समझने के लिये काफी है। एक सवर्णवादी धारा रोहित को कायर, बुजदिल, अतिवादी, देशद्रोही और आरोपी करार दे रही है तो दूसरी बहुजनवादी धारा उसे क्रांतिकारी, दलित नायक, शहीद और सामाजिक न्याय का नायक और पीड़ित बता रहा है।

अगर रोहित जीवित होता तो 30 जनवरी, 2016 को जिन्दगी के 27 साल का जश्न मना रहा होता।

भारत सरकार के श्रममंत्री बंडारू दत्तात्रेय के लिखे पत्र और शिक्षामंत्री स्मृति इरानी के अग्रसारित पत्र के अनुसार रोहित एक अतिवादी, जातिवादी और राष्ट्रद्रोही मुहिम का हिस्सा था। लेकिन इन आरोपों का गंभीरता से विश्लेषण करें तो अतिवादी होना एक स्वभाव एवं विचारधारा से जुड़ी बात है वहीं जाति इस भारत भूमि पर पैदाइश से जुड़ी सामाजिक हकीकत।

कौन है जातिवादी

यूँ इस देश में कट्टर अतिवादी होने के नाम पर हिन्दू हो या मुसलमान किसी को भी अकारण ही बिना अपराध के सजा दिये जाने के कारण नहीं बनता हैं। पर जिस देश में समाज की मूल अवधारणा ही जाति पर बनी हो, किसी को जातिवादी करार देना कोई बड़ी बात नहीं है। रोहितअगर दलित या पिछड़ा होते हुये जातिवादी था तो उसके विरोध मेंखड़ी पूरी जमात कोई सामाजिक क्रांति के अग्रदूतों की नहीं बल्किस्वाभाविक तौर पर सवर्ण– मनुवादी– ब्राह्मणवादी औरजातिवादी ही दिखाई देती है।

याकूब मेमन को मिले फाँसी की सजा के विरोध में लोकतांत्रिक तरीके से पक्ष रखना अगर अपराध है तो देश में संविधान, कानून, पुलिस- प्रशासन भी है।  फिर याकूब मेमन या अफजल गुरू का जिसने मुकदमा लड़ा हो तो उन सबको क्यों न फाँसी पर लटका देना चाहिये।

दो मंत्रियों की भूमिका

रोहित पर लगे आरोप उसके विरोधियों के राजनीतिक बचाव के लिये मायने जरूर रखते होंगे लेकिन अब वो दुनिया में नहीं है तो उसके परिवार एवं समर्थकों के लिये जानना महत्वपूर्ण है कि उसकी मौत क्यों, कैसे, हुई। इसकी उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिये लेकिन निष्पक्ष जाँच कैसे संभव होगी यह भी सवाल है क्योंकि इसमें केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के दो मंत्री स्पष्ट तौर पर और तकनीकी रूप से शामिल है।

दत्तात्रय व ईरानी की चिट्ठी

इस घटना आलोक में बंडारू दत्तात्रेय को स्मृति इरानी को लिखे गये एक पत्र में विश्वविद्यालय को 'अतिवादी- जातिवादी- राष्ट्रद्रोही राजनीति का गढ़'  एवं कुलपति को मूकदर्शक घोषित करते हुये सख्त कार्रवाई करने को कहा था। फिर इसी को आधार बनाकर स्मृति इरानी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को -वीआईपी- नोटिंग कर 5 पत्र लिखे जो साबित करते हैं कि एक बड़े स्तर का राजनीतिक दबाव जो हस्तक्षेप ही नहीं बल्कि इस पूरे मामले को निर्देशित किया जा रहा था।

केन्द्रीय मंत्रियों बंडारू एवं स्मृति के बढ़ते दबाव ने नि:संदेह कुलपति को दलित छात्रों के खिलाफ कार्रवायी को बाध्य कर दिया। रोहित को भगोड़ा और कायर घोषित करने वाले लोगों के लिये यह जानना जरूरी है कि अपनी मौत के दो हफ्ते पूर्व से वह विश्वविद्यालय कैम्पस के बाहर टेन्ट में रहने को बाध्य था और उसका 25 हजार रूपये का पीएचडी रिसर्च फेलोशिप जुलाई, 2014 से नहीं दिया जा रहा था।

पत्र लिखा कर रोहित ने की थी जहर की मांग

अपनी मृत्यु के पूर्व रोहित ने एक पत्र छोड़ा था जिसकी चर्चा आम है लेकिन इसके एक महीने पूर्व दिसम्बर में उसने कुलपति को लिखे अपने पत्र में न्याय न दिये जाने की स्थिति में जहर या फाँसी का फंदा देने की अपील की थी। इस पत्र में उसने खुद को 'दलित आत्मसम्मान मुहिम' का सदस्य बताते हुये अपनी तरह के छात्र जो विश्वविद्यालय परिसर में लगतार चल रहे आम उत्पीड़न के माहौल से परेशान है मुक्ति की नींद सुला देने की गुजारिश की थी। इस पत्र की भाषा जाहिर करती है कि किसी जोश या होश खोकर लिखा गया नहीं है बल्कि बेहद संवेदनशील उदगार है जो विश्वविद्यालय परिसर के बहुजन विरोधी माहौल को उजागर करते हैं।

ये रही पहली जांच, ये रही दूसरी

रोहित अम्बेदकर स्टुडेन्ट एसोशियेशन नामक संगठन के उन पाँच छात्रों में शामिल था जिन्हें एबीवीपी कार्यकर्ता की पिटाई के मामले में विश्वविद्यालय से सस्पेंड किया गया था। इस संबंध में विश्वविद्यालय के द्वारा गठित विशेष जाँच समिति ने इन छात्रों को आरोप मुक्त कर दिया गया था। इसके बाद एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर बंडारू दत्तात्रेय को अपने पक्ष खड़ा किया। फिर बंडारू ने स्मृति और स्मृति के कुलपति को हड़काने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरे चार महीने के उपरांत मामले में अपने ही फैसले पर पुनर्विचार किया और संबंधित दलित छात्रों को हॉस्टल, कैन्टीन, कैफेटेरिया सहित कैम्पस बहिष्कृत कर दिया।

जब ये छात्र बाहर निकाले जा रहे थे तो पूरा एबीवीपी संगठन अपनी जीत का जश्न मनाते हुये तालियाँ बजाकर उन्हें चिढ़ा रहा था। विश्वविद्यालय से इन छात्रों को सिर्फ निकाला नहीं गया था बल्कि जातिवादी मानसिकता के तहत सामाजिक तौर पर बहिष्कृत किया गया था। 21वींसदी सामाजिक बहिष्करण के सिद्धांत को समझना तो जरूर आसान है जब विश्वविद्यालयों में सोशल एक्सक्लूजन सेन्टर खोले जा रहे हैं। रोहित पर कार्रवाई में जिस एबीवीपी कार्यकर्ता संदीप को पीटने का आरोप था उसके बारे में यह बात साफ हो गई हैं कि घटना के दो दिनों के बाद उसके एपेन्डिक्स का ऑपरेशन हुआ जिसें यह रहस्य खुलने तक संगीन मामला बनाकर आरोपी छात्रों के खिलाफ पेश किया गया था।

 

असल लड़ाई को दलित बनाम पिछड़ा बनाने का खेल

यह भी खबर पेश की जा रही है कि रोहित दलित नहीं पिछड़ा है या फिर उसकी माँ पिछड़ी जाति से है और पिता दलित है। उसी तरह बंडारू दत्तात्रेय के कभी दलित या फिर पिछड़ा (यादव) होने को प्रचारित किया जा रहा है। जाहिर है दलित बनाम दलित, पिछड़ा बनाम पिछड़ा या दलित बनाम पिछड़ा की स्थिति पैदा कर रोहित की मौत से उभरे सवालों को संघ- बीजेपी दफन करने की जी-तोड़ कोशिश में लगी है।

फिलहाल माँ- बाप ने एक होनहार क्रांतिकारी मिजाज बेटा खोया और शोषित (दलित या पिछड़ा) समाज के अपना एक नेतृत्वकर्ता युवक खो दिया। जाहिर है कि देश ने कुछ भी नहीं खोया होगा क्योंकि देशभक्ति का प्रमाण-पत्र बाँटने की ठेकेदारी कर रही पार्टी के गुर्गों की परिभाषा के दायरे में रोहित देश विरोधी था जिसकी परिणति वे मौत मानते हैं।
जय भीम नमो बुद्धाय

याकुब मेमन की फाँसी रुकवाने के लिए जिन चालीस लोगो ने राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिखी है..उनके नाम..!!

~क्या??? बाबा साहेब को पढ़ना अब राष्ट्रविरोधी गतिविधी हो गया है~
याकुब मेमन की फाँसी रुकवाने के लिए जिन
चालीस लोगो ने राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिखी है..उनके नाम..!!
01- वृंदा_करात
02- प्रकाश_करात
03- शत्रुघ्न_सिन्हा
04- राम_जेठमलानी
05- महेश_भट्ट
06- शाहरुख_खान
07- अमिर_खान
08- सैफ_खान
09- नसीरुद्दीन_शाह
10- सलमान_खान
11- अरविंद_केजरीवाल
12- तिस्ता_सितलवाड
13- दिग्विजय_सिंह
14- लालू_यादव
15- नितीश_कुमार
16- अबु_आजमी
17- प्रशांत_भुषण
18- अससुद्दीन_ओवैसी
19- अखिलेश_यादव
20- आजम_खान
21- सचीन_पायलट
22- राहुल_राय
23- जनरैल_सिंहद
24- अलका_लांबा
25- आशुतोष
26- सागरिका_घोष
27- करिना_खान
28- सानिया_मिर्जा
29- अकबरूद्दिन_ओवैसी
30- शाजीया_इल्मी
31- अहमद_बुखारी
32- अभय_दुबे
33- रविश_कुमार
34- पुण्य_प्रसुन_बाजपेयी
35- ममता_बॅनर्जी
36- सिद्धारमैया
37-आशीष_खेतान
38- अग्निवेश
39- संजय सिंह
40- शकील_अहमद
सिर्फ फांसी का विरोध जताया- रोहित वेमुला और सभी अम्बेडकरवादी साथी
ताज्जुब है कि दत्तात्रेय बंडारू, स्मृति ईरानी और बाकी संघीयों को सिर्फ रोहित वेमुला और साथ में निष्काषित किये गए चार लोग ही राष्ट्र विरोधी लगे।
असल कारण ये है इन 40 लोगो में से कोई भी बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की विचारधारा पर चलने वाले और लोगो को बाबा साहेब के विचारो के प्रति जागरूक करने वाले नहीं रहे है।
बाबा साहेब को पढ़ना और उनके विचारो को लोगो तक पहुँचाना अब राष्ट्रद्रोह है? क्योंकि RSS की विचारधारा का सच मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद पर आधारित हिन्दुवाद है। बाबा साहेब ने इसी ब्राह्मणवादी हिन्दुवाद से सावधान होने को कहा था।
अभी तक जिन्होंने बाबा साहेब को नहीं पढ़ा है, वो बाबा साहेब की किताबो और भाषणों को अवश्य पढ़े और अपने लोगो को पढ़ायें। जो अशिक्षित है, उन्हें बाबा साहेब की किताबो को पढ़ कर सुनाये।
लोगो को जागरूक करने के लिए इतना काफी है। बाबा साहेब की इन किताबो में वो शक्ति है, जिसकी वजह से महाराष्ट्र सरकार और बीजेपी RSS इतनी डर गई है कि इन संघीयों ने इन किताबो के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। (क्योंकि इन किताबो के कॉपी राइट्स सरकार के पास ही है)
आप समझ सकते है ऐसा क्या है इन पुस्तको में कि ब्राह्मणवाद की जड़े हिल गई है।

केंद्र सरकार ने रिसर्च स्लकॉरों की महज 8000 के आसपास की फेलोशिप को खत्म कर दिया है

चार खबरों को एक-दूसरे से जोड़ कर देखिए और भविष्य की भयावह तस्वीर का अंदाजा लगाइए- 
1- केंद्र सरकार ने रिसर्च स्लकॉरों की महज 8000 के आसपास की फेलोशिप को खत्म कर दिया है..! सैकड़ों स्टूडेंट्स लंबे समय से मौसम और प्रशासन की लाठी की मार सहते हुए यूजीसी के सामने इस फेलोशिप को बहाल करने की मांग के साथ धरने पर बैठे हैं, सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है..!
2- हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्टूडेंट रोहित ने 'आत्महत्या' कर ली, उसमें एक पहलू यह भी है कि उनका स्कॉलरशिप पिछले पांच महीने से रोक दिया गया था।
3- तमिलनाडु में एक प्राइवेट संस्थान में फीस नहीं चुका सकने की वजह से तीन लड़कियों ने खुदकुशी कर ली!
4- मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार नब्बे प्रतिशत (लगभग एक लाख आठ हजार सरकारी स्कूलों को बंद करने जा रही है, राजस्थान के भाजपा राज में करीब 18000 से ज्यादा सरकारी स्कूल बंद किया जा चुका है, कुछ दूसरे राज्यों में भी यह अभियान तेजी से चल रहा है..!
इसकी चपेट में तो सभी तबकों के कमजोर स्टूडेंट्स और समाज आएंगे, लेकिन असली संदेश यह है जो मनु-स्मृति और आरएसएस का मुखिया भागवत भी स्त्री के लिए कहता है कि लड़कियों, पढ़ना-लिखना बंद करो, रसोईघर संभालो..! दलित-वंचित जातियों के बच्चों, पढ़-लिख लोगे तो इस पंडावाद की गुलामी कौन करेगा..! 
दुनिया भर में सबसे निकृष्ट, बर्बर और असभ्य मनु-स्मृतीय समाज बनाने और शासन-व्यवस्था लागू करने के लिए मनु-स्मृति सामने होना नहीं, सत्ता और तंत्र पर पंडावाद का कब्जा होना जरूरी है..! इस मनु-स्मृतीय राज-समाज के भयावह नतीजों और छवियों का इंतजार कीजिए..

Tuesday, January 26, 2016

Letter to University of hyderabad Government of India Open Letter to the Vice Chancellor of the University of Hyderabad.

रोहित वेमुला के मामले पर अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी व इटली के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 197 प्रोफेसरों का खुला पत्र.
Letter to
University of hyderabad
Government of India
Open Letter to the Vice Chancellor of the University of Hyderabad.
 
Supporters
We of the global scholarly community make an urgent appeal that justice be done in the most recent case of caste discrimination in Indian higher education, that of the University of Hyderabad's prejudicial suspension of five young Dalit men pursuing PhDs. It was ordered under political pressure, without even allowing the young men in question to speak in their own defense.  It directly contravened an earlier decision made by the University administration itself, which had exonerated them of any charges of wrongdoing—charges which had been trumped up by political rivals opposed to the activism of these young men.
This prejudice has now exacted a terrible price.  One of the five, a scholar of great promise, Rohith Vemula, committed suicide on January 17. Unable to bear the despair of having his one chance at a future snatched from him, of his value being reduced, in his own eloquent parting words, to nothing but "a vote" and "an immediate identity," he took his own life (see https://www.sabrangindia.in/article/letter-should-shake-our-world-dalit-scholar-suicide-triggers-outrage ).  As scholars we know that individual actions are never just that.  This suicide is not an individual act.  It is the failure of higher educational institutions in democratic India to meet their most basic obligation: to foster the intellectual and personal growth of India's most vulnerable young people.  Instead, Rohith now joins a long list of victims of prejudice at premier institutions in the country, where pervasive discrimination drives so many Dalit students to depression and suicide, when not simply forcing them to quietly drop out.
As international scholars of South Asia, we ask the authorities at the University of Hyderabad to immediately reinstate Mr. Vemula's four peers, to provide support to his family, and to launch a police investigation into his passing.  But that is not enough.  The University of Hyderabad must ensure not only that justice be done now, but that further injustice be rigorously prevented.  It is vital to the life of any academic institution to actively nurture students exactly like Rohith, whose contribution to civic life and healthy political debate made the university the place of learning and personal transformation it should be. Measures must be implemented to ensure that such students are supported and allowed to thrive when they enter what is all too often the hostile, casteist environment of higher education in India.   A university where students turn away from life with the regularity they have at the University of Hyderabad requires urgent and massive rehauling.  
The involvement of political leaders in buttressing caste discrimination in Indian universities, and the double standards applied by university administrations to anti-caste student activity, directly contribute to the negative reputation India is earning among scholars worldwide.  We urge the University of Hyderabad to restore our confidence by living up to its obligation to end institutionalized discrimination, to educate all students in a climate of respect and empathy, and to resist political pressures to do otherwise.  We are all watching.      
1. Rupa Viswanath, Professor of Indian Religions, University of Göttingen, Germany
2. Joel Lee, Assistant Professor of Anthropology, Williams College, USA
3. Dwaipayan Sen, Assistant Professor of History, Amherst College, USA
4. Nathaniel Roberts, Research Fellow, Max Planck Institute for the Study of Religious and Ethnic Diversity, Germany
5. Gajendran Ayyathurai, Postdoctoral Researcher, University of Göttingen, Germany
6. David Mosse, Professor, SOAS University of London, UK.
7. Karthikeyan Damodaran, PhD Scholar, University of Edinburgh.
,8. Hugo Gorringe, Senior Lecturer, University of Edinburgh.
9. T. Dharmaraj, Visiting Professor, Centre for Modern Indian Studies, University of Göttingen.
10. Ania Loomba, Professor, University of Pennsylvania, USA.
11. Lalit Vachani, Research Fellow, Center for Modern Indian Studies, University of Göttingen, Germany
12. Srirupa Roy, Professor of State and Democracy, Center for Modern Indian Studies, University of Göttingen, Germany
13. Christophe Jaffrelot, Dr., CERI-Sciences Po/CNRS, Paris, France
14. Suvir Kaul, A. M. Rosenthal Professor, University of Pennsylvania, USA
15. Frank J. Korom, Professor of Religion and Anthropology, Boston University, USA
16. John Harriss, Professor, Simon Fraser University, Canada
17. Dilip Menon, Professor and Director, Centre for Indian Studies, University of Witwatersrand, South Africa
18. Raka Ray, Professor of Sociology and South and Southeast Asian Studies, University of California, Berkeley, USA.
19. Jonathan Spencer, Regius Professor of South Asian Language, Culture and Society, University of Edinburgh, UK
20. Constantine Nakassis, Assistant Professor of Anthropology, University of Chicago, USA
21. Sankaran Krishna, Professor of Political Science, University of Hawaii-Manoa, USA
22. Chandra Mallampalli, Professor of History, Westmont College, USA
23. Timothy Lubin, Professor, Washington and Lee University, USA
24.  Linda Hess, Senior Lecturer, Stanford University, USA
25. Auritro Majumder, Assistant Professor, University of Houston, USA
26. P. Bagavandoss, Professor, Department of Biological Sciences, Kent State University, USA.
27. Shirin Rai, Professor of Politics and International Studies, University of Warwick, UK.
28.  Indira Arumugam, Assistant Professor of Sociology, National University of Singapore
29. Michele Friedner, Assistant Professor, Stony Brook University, New York, USA 
30. Dibyesh Anand, Associate Professor, University of Westminster, UK
31. Ravinder Kaur, Associate Professor, University of Copenhagen, Denmark.
32. James Caron, Lecturer in Islamicate South Asia, SOAS, University of London, UK.
33. Francis Cody, Associate Professor of Anthropology, University of Toronto, Canada.
34. Christopher Taylor, Assistant Professor of English, University of Chicago, USA
35.  Alpa Shah, Associate Professor (Reader) of Anthropology, London School of Economics and Political Science, UK.
36. Bishnupriya Ghosh, Professor of English, University of California, Santa Barbara 
37. Gloria Goodwin Raheja, Professor of Anthropology, University of Minnesota, USA
38.  Anjali Arondekar, Associate Professor of Feminist Studies, University of California, Santa Cruz, USA
39. Nosheen Ali, Habib University, Karachi
40. Vazira Zamindar, Associate Professor of History, Brown University, USA
41.  Kavita Philip, Professor of History, University of California at Irvine, USA
42. Bhavani Raman, Associate Professor, University of Toronto, Canada.
43. Subir Sinha, Development Studies, SOAS, London, UK.
44. Francesca Orsini, Professor, SOAS, London, UK.
45. Gilbert Achcar, Professor, SOAS, London, UK.
46. Nilanjan Sarkar, Deputy Director, South Asia Center, LSE, UK.
47. Jon Wilson, Senior Lecturer in History, King's College, London, UK.
48. Peter van der Veer, Director and Professor at the Max Planck Institute for the Study of Religious and Ethnic Diversity, Göttingen, Germany.
49. Tam Ngo, Researcher, Max-Planck-Institute for the Study of Religious and Ethnic Diversity, Göttingen, Germany
50.  Shakuntala Banaji, Lecturer, London School of Economics and Political Science, UK
51. Meena Dhanda, Reader in Philosophy and Cultural Politics, University of Wolverhampton, UK
52. Goldie Osuri, Associate Professor of Sociology, University of Warwick, UK.
53. Shana Sippy, Visiting Scholar, Carleton College, USA
54. Sarah Hodges, Associate Professor, University of Warwick, UK
55. Mukulika Banerjee, Associate Professor of Anthropology and Director, South Asia Centre, London School of Economics, UK
56. Paula Chakravartty, Associate Professor, MCC and Galatin, New York University, USA
57. Narendra Subramanian, Professor of Political Science, McGill University, Canada, and Visiting Senior Research Fellow, Max-Planck-Institute for the Study of Religious and Ethnic Diversity, Göttingen, Germany.
58. Gurminder K Bhambra, Professor, University of Warwick
59. Rashmi Varma, Associate Professor, University of Warwick, UK
60. Uday Chandra, Assistant Professor of Government, Georgetown University, Qatar
61. Anupama Rao, Associate Professor of History, Barnard College, Columbia University, USA
62. Neena Mahadev, Postdoctoral Fellow, Max Planck Institute for the Study of Religious and Ethnic Diversity, Germany.
63. Nusrat S Chowdhury, Assistant Professor of Anthropology, Amherst College, USA
64. Kavin Paulraj, Lecturer, Saint Mary's College of California, USA
65. Asiya Alam, History Department, Louisiana State University, USA
66. Ananya Chakravarti, assistant professor of history, Georgetown University
67. Jesse Knutson, Assistant Professor of Sanskrit, University of Hawaii Manoa
68. Gopal Balakrishnan Professor, History of Consciousness, University of California Santa Cruz, USA
69. Geir Heierstad, Research Director, Norwegian Institute for Urban and Regional Research, Norway
70. Kenneth Bo Nielsen, Coordinator, Norwegian Network for Asian Studies, Norway.
71. Andrew Liu, Assistant Professor of History, Villanova University, USA
72. Toussaint Losier, Assistant Professor of Afro-American Studies, University of Massachusetts, Amherst, USA.
73. Pinky Hota, Assistant Professor of Anthropology, Smith College, Northampton MA
74. Madhumita Lahiri, Assistant Professor of English, University of Michigan, Ann Arbor, USA
75. Juned Shaikh, Assistant Professor, Department of History, University of California, Santa Cruz
76. Neilesh Bose, Canada Research Chair in Global and Comparative History University of Victoria
77. Lawrence Cohen, Professor and Director, Institute of South Asia Studies, University of California, Berkeley, USA
78. John Holmwood, Professor of Sociology, University of Nottingham, UK.
79. Balmurli Natrajan, Associate Professor, William Paterson University of New Jersey, USA.
80. Richard Alexander, Lecturer in Financial Law, SOAS University of London, UK.
81. Eleanor Newbigin, Senior Lecturer, SOAS, University of London
82. Chinnaiah Jangam, Assistant Professor of History, Carleton University, Canada.
83. Matthew J Nelson, Reader in Politics, SOAS, University of London.
84. Sîan Hawthorne, Lecturer in Critical Theory & the Study of Religions, SOAS, London, UK.
85. Amrita Shodhan, SOAS, University of London, UK.
86. Michael Hutt Professor and Director, SOAS South Asia Institute, University of London, UK
87. Jonathan Goodhand, Professor in Conflict and Development Studies, SOAS, University of London, UK
88. Nitasha Kaul, Author and academic, University of Westminster, London.
89. Deepankar Basu, Associate Professor, University of Massachusetts, Amherst.
90. Somak Biswas, Doctoral Candidate, Department of History, University of Warwick, UK
91. Michael Levien, Assistant Professor of Sociology, Johns Hopkins University, USA
92. Nilisha Vashist, M.Phil/PhD student, University College London, UK
93. Rama Mantena, Associate Professor of History, University of Illinois at Chicago, USA
94. Sohini Kar, Assistant Professor, London School of Economics and Political Science, UK
95. Dr. Jacob Copeman, Social Anthropology, University of Edinburgh.
96. Dr. Priyamvada Gopal, Cambridge University, UK.
97. Carole Spary, Assistant Professor, University of Nottingham, UK.
98. James Putzel, Professor of Development Studies, LSE, UK.
99. Romola Sanyal,  Assistant Professor, London School of Economics and Political Science, UK
100. Dr Barnita Bagchi, Literary Studies, Utrecht University, Netherlands.
101. Dag Erik Berg, Postdoctoral Fellow, Center for Modern Indian Studies, University of Göttingen, Germany.
102. Dr Kalpana Wilson, London School of Economics, UK
103. Chetan Bhatt, Professor, Department of Sociology, London School of Economics and Political Science, UK
104. Rahul Rao, Senior Lecturer in Politics, SOAS, University of London, UK
105. Dr Alan Bullion, The Open University, UK
106. Katharine Adeney, Professor and Director of the Institute of Asia and Pacific Studies, University of Nottingham, UK
107. Dr. Mara Matta, Modern Literatures of the Indian Subcontinent, SAPIENZA Università di Roma, Italy
108. Pritam Singh, Professor of Economics, Oxford Brookes University, UK.
109. Dr. Sunil Kumar, Lecturer, London School of Economics, UK
110. Maitreesh Ghatak, Professor of Economics, London School of Economics and Political Science, UK
111. Richa Nagar, Professor, University of Minnesota, Twin Cities, USA
112. Mary Kaldor, Professor, London School of Economics and Political Science, UK
113. David Lewis, Professor of Social Policy, London School of Economics and Political Science, UK
114. Dr. Suthaharan Nadarajah, Lecturer, SOAS, University of London
115. Dr. Navtej Purewal, SOAS, University of London, UK
116.  Shruti Sinha, Toulouse School of Economics, France.
117. Robert Cassen, Professor
118.  Apurba Kundu, Deputy Dean, Anglia Ruskin University, UK.
119. Rachel McDermott, Associate Professor of Religion, Barnard College, Columbia University, USA.
120. Dr. Clarinda Still, Contemporary South Asian Studies Programme, University of Oxford, UK
121. Chad M. Bauman, Associate Professor of Religion, Butler University, USA.
122. Nandini Bhattacharya, Lecturer in History, University of Dundee, UK
123. Vijay Prashad, Professor, Trinity College, USA and Chief Editor, LeftWord Books.
124. Lucinda Ramberg, Assistant Professor, Cornell University, USA. 125.  Pippa Virdee, Senior Lecturer in Modern South Asian History, De Montfort University, UK.
126. Andrew J. Nicholson, Associate Professor, State University of New York, Stony Brook
127. Dr. Teena Purohit, Department of Religion, Boston University.
128. Sahana Bajpaie,  Instructor in Bengali, SOAS, University of London, UK.
129. M. V. Ramana, Physicist, Princeton University, USA
130. Andrew Sartori, Professor of History, New York University, USA
131. Shailaja Paik, Assistant Professor, University of Cincinnati, USA.
132. Jayadev Athreya, Associate Professor of Mathematics, University of Washington, USA.
133. Ajantha Subramanian, Professor of Anthropology and South Asian Studies, Harvard University
134. Sumeet Mhaskar, Humboldt Postdoctoral Fellow, Centre for Modern Indian Studies, Unviersity
135. Whitney Cox, Associate Professor, South Asian Languages and Civilizations, University of Chicago, USA. 
136. Nandini Deo, Associate Professor of Political Science, Lehigh University, USA.
137. Dia Da Costa, Associate Professor, University of Alberta, Canada.
138. Debjani Bhattacharyya, Assistant. Professor, Drexel University, USA
139. Yogesh Chandrani, Visiting Assistant Professor of Anthropology at Colorado College, USA
140.  Projit Mukherjee, Assistant Professor, University of Pennsylvania, USA.
141. Tejaswini Ganti, Associate Professor, Anthropology, New York University
142. Amit R. Baishya, Assistant Professor, University of Oklahoma, USA.  
143. Tsitsi Jaji, Associate Professor, Duke University, USA.
144. Pulikesi C. Rajangam, Faculty Assistant, Department of Zoology, University of Wisconsin, Madison, USA
145. SHARIKA THIRANAGAMA, assistant professor of anthropology , STANFORD UNIVERSITY
146. Benjamin Siegel, Assistant Professor of History, Boston University, USA.
147. Shefali Chandra, Associate Professor of South Asian History, Washington University in St. Louis, USA.
148. Prathim-Maya Dora-Laskey, Assistant Professor, Alma College, USA.
149. Kasturi Ray, Associate Professor, San Francisco State University, USA
150. Nandita Sharma, Professor, University of Hawaii at Manoa, USA
151. Malarvizhi Jayant, PhD Student, University of Chicago, USA
152. Martha Ann Selby, Professor of South Asian Studies and Chair of Department of Asian Studies, The University of Texas at Austin, USA
153. Dr Sumeet Jain, Lecturer in Social Work, University of Edinburgh, UK
154. Nandita Sharma, Professor, University of Hawaii at Manoa, USA
155. Sanjukta Das Gupta, Associate Professor, Department of Oriental Studies, Sapienza University of Rome, Italy
156. Priyanka Srivastava, Assistant Professor of History, University of Massachusetts, Amherst, USA
157. Sujani Reddy, Associate Professor of American Studies, State University of New York Old Westbury, USA
158. J A Hernández Carrillo, Associate Professor of History, The University of Houston, USA
159. Carmel Christy, Fulbright-Nehru visiting scholar, Department of History, University of California, Santa Cruz, USA
160. Johan Mathew, Departments of History and Economics, University of Massachusetts-Amherst, USA
161. Rukmini Barua, PhD Candidate, University of Göttingen, Germany
162. Romina Robles Ruvalcaba, Lecturer, California State University, Long Beach
163. Aditya Sarkar, Assistant Professor, History Department, Warwick University, UK
164. Chandak Sengoopta, Professor of History, Birkbeck College, University of London, UK
165. Tarini Bedi, Assistant Professor, Department of Anthropology, University of Illinois at Chicago, USA
166. Urmitapa Dutta, Assistant Professor, Department of Psychology, University of Massachusetts, Lowell, USA
167. Shweta Moorthy, Assistant Professor of Political Science, Northern Illinois University, USA
168. Daniel Rudin, Reserch Scholar, Film and Digital Media, University of California, Santa Cruz, USA
169. Indrajit Roy ESRC Research Fellow, Wolfson College, University of Oxford, UK.     
170. Jacob Kovalio, Professor of Japanese/Chinese/Asian History/Studies
Carleton University, Canada
171. Mayur Suresh, Lecturer, School of Oriental and African Studies, London, UK.
172. Divya Cherian, Postdoctoral Fellow, Rutgers University, USA.
173. Dr Jayeeta Sharma, Associate Professor, University of Toronto, Canada
174. Kalyani Devaki Menon, Associate Professor, DePaul University, USA
175. Renisa Mawani, Associate Professor, Sociology, University of British Columbia, Canada
176. Ajay Parasram, Doctoral Candidate and Lecturer Department of Political Science, Carleton University, Canada
177. Raza Mir, Professor of Management, William Paterson University, USA
178. Deborah Nurse, PhD Candidate, Carleton University, USA.
179. Pratik Chakrabarti, Professor of History of Science and Medicine, University of Manchester, UK
180. Ambarien Alqadar, Assistant Professor, Rochester Institute of Technology, USA
181. Kajri Jain, Associate Professor, University of Toronto, Canada
182. Praseeda Gopinath, Associate Professor and Director of Graduate Studies
Binghamton University, State University of New York, USA
183. Prof. Shubhra Gururani, Associate Professor, Anthropology, York University, Canada.
184. Sourit Bhattacharya, Doctoral candidate and seminar tutor, English and Comparative Literary Studies, University of Warwick, UK
185. Dr Satoshi Miyamura, Department of Economics, SOAS, University of London, UK
186. Shrikant Botre, PhD  student, University of Warwick, UK.
187. Deepa Kurup, MPhil candidate, Oxford University, UK.
188. Sarah Pierce Taylor, Visiting Instructor of Religion, Mount Holyoke College, USA.
189. Clement Bayetti, PhD Student, Division of Psychiatry, University College London, UK.
190. Gayatri Reddy, Associate Professor, University of Illinois at Chicago, UK
191. Nancy Rose Hunt, Professor of History, University of Michigan, USA.
192. Manuel Capella, PhD student, Division of Psychiatry, University College London, UK
193. Nicole D'souza, PhD Candidate, Division of Social & Transcultural Psychiatry, McGill Unviersity, Canada
194. Luisa Molino, MSc - Research Associate, Simone de Beauvoir Institute, Concordia University, Canada
194. Janet Hoy, PhD, Associate Professor of Social Work, University of Toledo, Ohio, USA
195. Dr Sophia Koukoui, PsyD/PhD, Clinical Psychologist and Postdoctoral Fellow of Psychiatry, McGill University, Canada.
196. Mathew Rosen, Visiting Assistant Professor of Anthropology, Ohio University
197. Beatrice Jauregui, Assistant professor, University of Toronto
 
Letter to
University of hyderabad
Government of India
Open Letter to the Vice Chancellor of the Univers ..   Inity of Hyderabad.
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RSS workers, Dalit students clash in Dharavi over Rohit Vemula suicide

RSS workers, Dalit students clash in Dharavi over Rohit Vemula suicide

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25 Jan, 2016, 0653 hrs IST, ET Bureau

Protest over the suicide of Vemula

MUMBAI: Around 15 Dalit students who were carrying out a march in Mumbai to protest against the suicide of Rohit Vemula were allegedly beaten up by RSS workers on Sunday evening. 

Around 250 to 300 Dalit students under the banner of Justice for Rohit Joint Action Committee were carrying out a procession through Dharavi on Sunday when RSS activists allegedly beat them up. 

One of the activists who only gave her first name Harshali claimed that the procession was about to wind down when the attack happened. " We were just 10 minutes from where we were to end our procession however as soon as our procession neared the RSS shakha, we found a group of 12 to 15 waiting for us lathis and rods. Once they saw us they began attacking us. "said Vaishali. 

Vaishali claimed that around 10 to 15 students received injuries in the assault. She alleged that BJP's Ministers like Education Minister Vinod Tawde and Local Mla Tamil Selva were pressurizing the cops not to register a case against the RSS workers under the atrocity act. Angry over the police not registering a case under the Atrocity act, the Dalit students tried to stage a dharna. While Tawde was no available for comment, Selvan when contacted denied that he had pressurized the police. 

" I did go to the police station but I simply spoke to the DCP to register a case as per law on whoever is involved. You can check with the DCP on what I have said. I barely stayed in the police station for 15 minutes." Said Selvan. 

According to Selvan it would be wrong to claim that the Dalit students were assaulted by RSS workers. " It was actually a clash, the students had gone below the RSS shakha and were raising slogans against the RSS and Prime Minister Narendra Modi. The RSS cadres then got down the building and argument ensued which culminated in to a fight." 

According to the BJP MLA, even the RSS workers were injured in the fight. " Two of the RSS cadres have suffered deep injuries on their head in the clash and are admitted at the Sion hospital."said Selvan. 

Senior police officials were not available for comment however later in the day a case was being filed under the Atrocity act against the RSS workers. However there was no confirmation for the same.

Monday, January 25, 2016

ब्राम्हणों की राजनीति का शिकार एक और एकलव्य

ब्राम्हणों की राजनीति का शिकार एक और एकलव्य😔
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने रविवार रात फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली. दलित समुदाय से आने वाले रोहित को उनके चार  अन्य साथियों के साथ कुछ दिनों पहले हॉस्टल से निकाल दिया गया था. इसके विरोध में वो पिछले कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे. कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे. आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला ने एक पत्र छोड़ा है. यहां हम अंग्रेज़ी में लिखे इस मूल पत्र का हिंदी में अनुवाद दे रहे हैं. 

आप जब आप पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख़्याल भी रखा.
मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं. मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं. हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों. एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया. एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में. मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो. हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए. इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला. इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस ख़ाली हूं. मुझे अपनी भी चिंता नहीं है. ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे. मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है. आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें. मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक. 'छाया से सितारों तक' उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं. अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना. आख़िरी बार जय भीम मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है. किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से. ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं. मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.

Thursday, January 21, 2016

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने की कोशिश करेहैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या करने से पहले जो पत्र लिखाउसमें उन्होंने खालीपन के अहसास को आत्महत्या जैसा कदम उठाने का कारण माना है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ब्राह्मणवादी करतूतों का विरोध करते हुए खालीपन के अहसास से भर जाना बहुत बड़ी त्रासदी है. यह हमारी सामूहिक त्रासदी है. रोहित जैसे न जाने कितने लोग व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए इस खालीपन से भर जाते हैं. यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं. रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने कीकोशिश करें.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की जनविरोधी विचारधारा और पूंजीवाद की विचारहीनता ने हमारे देश के माहौल को इतना जहरीला बना दिया है कि बदलाव की छोटी-मोटी कोशिशें अपने छोटे दायरे में ही दम तोड़ देती हैं. अगर प्रगतिशील ताकतों में एकजुटता रहे तो यह छोटा दायरा बड़ा भी हो सकता है.रोहित के लिए अपने संघर्ष को जारी रखना कितना मुश्किल बना दिया गया था इसे समझने के लिए उस मामले को ठीक से समझना होगा जिसने अंत में रोहित की जान ले ली. पिछले साल अगस्त में दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों और अन्य हिंदूवादी संगठनों के सदस्यों ने हिंसा की धमकी देकर 'मुजफ्फरनगर बाकी है' नाम की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोक दी थी. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बहुत शर्मनाक घटना थी. जब देश की राजधानी में ऐसा हो सकता है तो दूसरी जगहों पर क्या-क्या हो सकता है इसकी कल्पना करके ही दिल भय और निराशा से भर जाता है. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस घटना का विरोध हुआ और बाद में इस कैंपस में अखिल भारतीयविद्यार्थी परिषद के एक सदस्य ने रोहित और दूसरे छात्रों पर हिंसा का आरोप लगाया. जांच-पड़ताल के बाद यह आरोप झूठा सिद्ध हुआ. लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जो हमारे देश की ब्राह्मणवादी व्यवस्था की मानसिक गंदगी और कुटिलता को हमारे सामने लाता है.भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करनाभाजपा विधायक रामचंद्र राव ने इस मामले में 'दोषियों' को सजा दिलाने की मुहिम छेड़ दी. बंडारू दत्तात्रेय ने तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर 'राष्ट्रविरोधी'छात्रों को सजा दिलवाने की मांग की थी. पुराने वीसी के कार्यकाल में प्रशासन ने मेडिकल रिपोर्ट में मारपीट की बात के गलत साबित होने के बावजूद भाजपा के दबाव में रोहित और चार दूसरे दलित छात्रों को निलंबन की सजा दे दी. बाद में जब विद्यार्थियों ने इस सजा का जोरदार विरोध किया तो यह सजा वापस ले ली गई और नई जांच समिति गठित करने की घोषणा की गई. नए वीसी ने इस समिति को भंग करके नई समिति बनाई जिसने संबंधित पक्षों से पूछताछ किए बिना रोहित और उनके चार साथियों के हॉस्टल, प्रशासनिक भवन समेत मेस, लाइब्रेरी जैसी सार्वजनिक जगहों पर जाने पर पाबंदी लगा दी.आप रोहित के रूप में एक व्यक्ति को एक तरफ रखिए और दूसरी तरफ हमारे शासन तंत्र को. हमें रोहित की आत्महत्या को सही राजनीतिक संदर्भों में देखना होगा. जब आपको इस बात का अहसास हो जाए कि पूरातंत्र आपके खिलाफ खड़ा है तो आप क्या महसूस करेंगे? इस पाबंदी को कैंपसों में जाति प्रथा लागू करने के उदाहरण के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. चार दलित छात्रों के पिता खेतिहर मजदूर हैं. एक के माता-पिता गुजर चुके हैं. भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करना. हम भारत के शिक्षा संस्थानों के भगवाकरण को रोकने में नाकामयाब हो रहे हैं. रोहित इस सामूहिक नाकामयाबी से उपजी निराशा से उबरने की कोशिश कर रहे थे.उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू होने के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के विद्यार्थियों की मौजूदगी बढ़ी है. हालांकि जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से यह मौजूदगी संतोषप्रद नहीं है, लेकिन असमानता और शोषण को ही जीवन मूल्य मानने वाले लोग इस बदलाव से न केवल चिढ़ते हैं बल्कि इस प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार रहते हैं. जब हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय कैंपस में पानी की दिक्कत चल रही थी तब इस कैंपस के सौंदर्यीकरण के नाम पर फव्वारे लगाए गए. यही हाल तमाम दूसरे कैंपसों का है. रोहित को सात महीने से फेलोशिप नहीं मिली थी. उन्होंने आत्महत्या से पहले लिखे अपने पत्र में इस पैसे को अपने घरवालों तक पहुंचाने का अनुरोध किया है. पैसे की यह दिक्कत उन लाखों विद्यार्थियों को होती है जो तमाम असुविधाओं का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं. यूजीसी ने फेलोशिप बंद करने का जो फैसला सुनाया है उसका सबसे खराब असर दलितों और महिलाओं पर पड़ेगा.हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसक गतिविधियों को तो फिर भी देख लेते हैं लेकिन उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बौद्धिक हिंसा पर उतना ध्यान नहीं दे पाते जितना देना चाहिए. जब 2011 में एके रामानुजम के प्रसिद्ध निबंध '300 रामायणें : पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार' को दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के पाठ्यक्रम से हटाया गया तब यही हिंसा काम कर रही थी. वेंडी डोनिगर की हिंदुओं पर लिखी किताब को नष्ट करवाने वाली हिंसा भी हमारी चिंता के दायरे में होनी चाहिए. यही हिंसा दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों को बौद्धिकता का तमगादेकर रोमिला थापर के सामने खड़ा कर देती है. इस बौद्धिक हिंसा की काट ढूंढ़े बिना रोहित जैसे लोगों का संघर्ष हर दिन ज्यादा जटिल और कठिन होता जाएगा. तमाम शिक्षा संस्थानों में अयोग्य दक्षिणपंथियों को बड़े पदों पर बैठाना भी इसी हिंसा का हिस्सा है. यही लोग रोहित जैसे साथियों की जिंदगी को इतना बोझिल और कष्टप्रद बना देते हैं कि उन्हें आत्महत्या का विकल्प चुनना पड़ता है.अभी यह खबर मिली है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित के शव के इर्द-गिर्द खड़े प्रदर्शनकारियोंको पुलिस ने बेरहमी से पीटा है और आठ विद्यार्थियों को गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर वाटर कैनन से पानी डाला गया है. जनवरी की ठंड में पुलिस की लाठी-ठंडे और पानी का सामना करते हुए कैंपसों के भगवाकरण का विरोध कर रहे ये लोग ही हमारे लोकतंत्र के असली पहरेदार हैं. जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दो, इस मानसिकता ने हमारे देश को दलितों, स्त्रियों, मजदूरों आदि के लिए खुली जेल बना दिया है. एक तरफ इस जेल के कैदी आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वैश्विक पूंजी के बाजार में हमारे देश को विश्व की उभरती ताकत के रूप में पेश किया जा रहा है. इस बौद्धिक अश्लीलता पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना अच्छा होगा.

रोहित तुम जी सकते थे

रोहित तुम जी सकते थे ।
--------------------
रोहित 
तुम जी सकते थे।
अपमान के कड़वे घूंट 
पी सकते थे।
टेक सकते थे घुटने 
झुका सकते थे सिर
बन सकते थे समझौतावादी 
मगर तुमने खुद को सुना 
और दूसरा रास्ता चुना
जो कि  ठीक ही था ।
............

रोहित 
तुम्हारे कमरे में पाया गया था 
'खतरनाक सामान '
तस्वीर  बाबा साहब 
और सावित्री बाई फुले की ।
तुमने किये थे कुछ देशविरोधी कृत्य
जैसे कि -
 फाँसी की सजा की मुख़ालफ़त।
तुमने दंगों की हकीकत बतानी चाही थी।
तुमने  'मुजफ्फरनगर अभी बाक़ी है'
जैसी फिल्म दिखानी चाही थी ।

तुम्हें सिर्फ रिसर्च करना था 
तुम्हें सोचने की कौन बोला ?
तुमने चुपचाप रहना था
तुम्हें बोलने की कौन बोला ?
...............

रोहित 
तुमने सोच भी कैसे लिया ?
कि प्रचण्ड बहुमत वाले 
इस चक्रवर्ती राज में
तुम जो चाहोगे वो बोलोगे
और उनके विरुद्ध मुंह खोलोगे ।
उनकी मर्जी के खिलाफ 
कुछ भी मनचाहा खा लोगे ? 
नहीं करना था ,
पर तुमने किया ये सब
बन गए थे तुम एक कांटा
एक ना एक दिन 
निकालना ही था तुमको ।
 ..............

रोहित 
मंत्री बण्डारु और वीसी अपा राव
कह रहे है कि
उन्होंने नहीं  मारा तुमको ?
सही बात है ,
वे अब नहीं मारते 
किसी को ।
उनके पूर्वज मारते थे ,
एकलव्यों से अंगूठा कटवा लेते थे
और शम्बुकों का काट देते थे गला ।
पर अब वे ऐसा नहीं करते  ।
बस बना लेते है फंदे
गले के नाप के ।
फिर कोशिस करते है 
कि वो फंदे 
हमारे गलों के काम आ जाये ।
अब वे मारते नहीं 
करते है मरने को मजबूर ।
तुम्हारे साथ भी तो 
यही किया इन्होंने ।
......................
रोहित 
तुम लेखक बनना चाहते थे,
पर  लेख बन गए ।
तुमने मर कर भी वही किया 
जो तुम ज़िंदा रह कर 
कर सकते थे ।
तुमने इस समाज ,
राष्ट्र और धर्म के 
दोगलेपन और अन्यायकारी
चरित्र को किया है उजागर ।
तुम आज प्रतिरोध की 
सबसे प्रमुख आवाज़ बन गए हो ।
.......
रोहित
तुम्हारी मौत को 
आत्महत्या 
नहीं हैं ।
तुम आत्महंता नहीं 
आत्मबलिदानी हो 
हमारी नज़र में ।
तुमने लिया 
क्रूर व्यवस्था के विरुद्ध
सबसे कठोर निर्णय ।
.......................
रोहित 
तुम्हारा आखिरी खत 
जिसे सुसाइड नोट कहा जा रहा है ।
पढ़ा है मैने भी ।
तुमने खोल कर रख दिया 
अपना भीतर ।
तुमने उघाड़ दिया 
हम सबका बाहर ।

हाँ रोहित 
तुमने सही कहा 
हमारी भावनाएं दोयम ,
प्रेम बनावटी
और मान्यताएं झूठी हो गई है।
आदमी अब सिर्फ 
एक आंकड़ा,एक वोट
और वस्तु भर रह गया है ।

यह सच है मेरे दोस्त।
तुमने ठीक ही लिखा ।
तुम ठीक ही लड़े ।
तुमने सब ठीक ही किया ।

काश ,तुम और जी पाते !
लड़ पाते ,
बिना थके ।
तुम्हारी बेहद जरूरत थी 
इस भयानक दौर को ।
तुम्हारी तरह आज़ाद ख्याल
निडर ,बेमिसाल
इंसान चाहिए था हमको ।
..........
रोहित 
अब चिंता 
सिर्फ इतनी सी है कि
तुम्हारा बलिदान 
व्यर्थ नहीं जाये।
यह जंग कहीं 
हम हार नहीं जाये ।
कोई और एकलव्य
अपना अंगूठा नहीं खो दे।
किसी मरजादा 
पुरषोत्तम के हाथ
हम अपना शम्बूक नहीं खो दें।

तुम तो चले गए सितारों के पार 
पर हमें लड़नी होगी 
एक लम्बी लड़ाई।
हमें उम्मीद है 
कि एक न एक दिन 
हम उन सितारों को 
धरा पर उतार लाएंगे दोस्त
तुम्हारे खातिर।
ताकि भविष्य में 
कोई और रोहित वेमुला 
इस तरह नहीं जाये चला 
हाथों से हमारे।
जिस तरह तुम
मरते वक्त थे 
बिलकुल खाली।
अभी वैसे ही मैं 
बिलकुल शून्य हो कर 
सोच रहा हूँ।
पर मरने के लिए नहीं ,
जीने के लिए...
एक आखिरी और निर्णायक जंग
लड़ने और जीतने के लिए....
कहते हुए तुमको ।
एक आखिरी जय भीम।

-भंवर मेघवंशी
स्वतन्त्र पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता ।
 संपर्क -bhanwarmeghwanshi@gmail.com

Wednesday, January 20, 2016

2007 से 2012 तक भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में आदिवासी और अछूत समुदाय के छात्रो की हुई मौत की संस्थान वार सूची

2007 से 2012 तक भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में आदिवासी और अछूत समुदाय के छात्रो की हुई मौत की संस्थान वार सूची।बहुत ज्यादा ही शानदार रिकार्ड है द्रोणाचार्यो का अंगूठा काटने में।  Malepula Shrikant, Jan 1, '07 Final year B.Tech, IIT Bombay Ajay S. Chandra, Aug 26, '07 Integrated PhD, Indian Institute of Science (IISc), Bangalore Jaspreet Singh, Jan 27, '08 Final year MBBS, Government Medical College, Chandigarh Senthil Kumar, Feb 23, '08 PhD, School of Physics, University of Hyderabad Prashant Kureel, Apr 19, '08 First year B.Tech, IIT Kanpur G. Suman, Jan 2, '09 Final year M.Tech, IIT Kanpur Ankita Veghda, Apr 20, '09 First year, BSc Nursing, Singhi Institute of Nursing, Ahmedabad D. Syam Kumar, Aug 13, '09 First year B.Tech, Sarojini Institute of Engineering and Technology, Vijayawada S. Amravathi, Nov 4, '09 National-level young woman boxer, Centre of Excellence, Sports Authority of AP, Hyderabad Bandi Anusha, Nov 5, '09 B.Com final year, Villa Mary College, Hyderabad Pushpanjali Poorty, Jan 30, '10 First year, MBA, Visvesvaraiah Technological University, Bangalore Sushil Kumar Chaudhary, Jan 31, '10 Final year MBBS, Chattrapati Shahuji Maharaj Medical University (former KGMC), Lucknow Balmukund Bharti, Mar 3, '10 Final year MBBS, AIIMS, New Delhi J.K. Ramesh, Jul 1, '10 Second year BSc, University of Agricultural Sciences, Bangalore Madhuri Sale, Nov 17, '10 Final year B.Tech, IIT Kanpur G. Varalakshmi, Jan 30, '11 B. Tech first year, Vignan Engineering College, Hyderabad Manish Kumar, Feb 13, '11 IIIrd Year B.Tech, IIT Roorkee Linesh Mohan Gawle, Apr 16, '11 PhD, National Institute of Immunology, New Delhi Anil Kumar Meena, Mar 3, '12 First year AIIMS, New Delhi http://­m.firstpost.com/­india/­the-mythology-of-the-­dalit-student-suicid­e-272191.html

Tuesday, January 19, 2016

Rohith Vemula was forced to commit suicide in Hyderabad Central University

Students' Federation of India
Delhi State Committee 
18-01-16

Delhi State Committee of the Students' Federation of India condemns the police action on students, who were protesting at the MHRD after a Dalit research scholar, Rohith Vemula was forced to commit suicide in Hyderabad Central University. Water canon was used against the protesting students and the police detained later nearly 150 students. 

Rohith Vemula was among the five Dalit students who were facing 'social boycott' at the hands of the university administration. It is important to underline the series of incidents that are behind the death of this bright, young student. Union minister Bandaru Dattatreya and Hyderabad MLC from BJP along with the ABVP intervened to paint these students as anti-nationals and extremists for their crime of organizing a documentary screening on Muzaffarnagar riots and questioning the hanging of Afzal Guru. Dattatreya in fact wrote a letter to the MHRD asking for strict action against these students. This death has shocked people across the country.

Union Minister Bandaru Dattatreya, Vice Chancellor of Hyderabad Central University and all others responsible for the suicide of Rohith should be booked under the SC Prevention of Atrocities Act immediately. 

Released by
Prashant Mukherjee (President)
Sunand (Secretary)

Monday, January 18, 2016

रोहित का आखिरी खत

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रोहित का आखिरी खत::

अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं...
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने रविवार रात फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।

 दलित समुदाय से आने वाले रोहित को उनके चार अन्य साथियों के साथ कुछ दिनों पहले हॉस्टल से निकाल दिया गया था। इसके विरोध में वो पिछले कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे। कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे। आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला ने एक पत्र छोड़ा है। यहां हम अंग्रेज़ी में लिखे उनके पत्र का हिंदी में अनुवाद दे रहे हैं। 

आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा। मुझ पर नाराज मत होना। मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने:मेरा बहुत ख्याल भी रखा।मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा से खुद से ही समस्या रही है। मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं।मैं एक दानव बन गया हूं। मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था। विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह।लेकिन अंत में मैं सिर्फ ये पत्र लिख पा रहा हूं।मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने  लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पायाकि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं।हमारा प्रेम बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के जरिए। यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों। एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नजदीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है। एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग से नहीं आंका गया। एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी।हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में। मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं। पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं।मुझे माफ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो। हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में। प्रेम,दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में। ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी। लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था। बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए। इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा। मेरा जन्म एक भयंकरदुर्घटना थी।मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया। बचपनमें मुझे किसी का प्यार नहीं मिला। इस क्षण मैं आहत नहीं हूं। मैं दुखी नहीं हूं। मैं बस ख़ाली हूं। मुझेअपनी भी चिंता नहीं है। ये दयनीय है और यही कारण है किमैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर करार देंगे। स्वार्थी भी, मूर्ख भी। जब मैं चला जाऊंगा। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे। मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यकीन नहीं करता। अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है। आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फेलोशिप मिलनी बाकी है। एक लाख 75 हजार रुपए। कृपया ये सुनिश्चित करदें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे रामजी को चालीस हजार रुपए देने थे। उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे। लेकिन प्लीज फेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें। मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो। लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं। आप जान जाएं कि मैं मर कर खुश हूं जीने से अधिक। छाया से सितारों तक'उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफी चाहता हूं। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफी। आप सबने मुझे बहुत प्यार किया। सबको भविष्य के लिए शुभकामना।मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया। खुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज‌िम्मेदार नहीं है। किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से। ये मेरा फैसला है औरमैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं। मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए।
आख‌िरी बार 
जय भीम

आत्महत्या या मर्डर

आत्महत्या या मर्डर ऑफ़ University of Hyderabad रिसर्च स्कॉलर::

हमें ज्ञात हुआ कि रोहिथ वेमुला नामक मूलनिवासी जो कि University of Hyderabad में रिसर्च स्कॉलर थे, ने आत्महत्या की। मूलनिवासी रोहिथ यूनिवर्सिटी द्वारा दिए गए अन्याय पूर्ण आदेश जिसमे 5 Ph.D student को ससपेंड कर दिया गया था,  के विरोध में पिछले  12 दिनों से संघर्ष कर रहा था।

मूलनिवासी संघ अपने बहुजन समाज के इस ब्राइट और यंग स्टूडेंट के परिनिर्वाण पर शोक में है जिसने अपना जीवन कैंपस में हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए न्योछावर कर दिया। हम इस घटना पर रोहिथ के परिवार और मित्रो के साथ दुःख व्यक्त करते है।

भारतीय राज्य और यूनिवर्सिटी के लिए बड़े ही शर्म की बात है कि एक यंग स्टूडेंट को कैंपस में न्याय पाने के लिये अपना जीवन न्योछावर करना पड़ता है।

हम इस घटना पर अपने विद्यार्थियों को यही सलाह देना चाहेंगे कि ऐसा स्टेप न ले जिससे कि हम अपने जीवन को नुक्सान पंहुचाए। हमें जीना होगा अगर अन्याय को ख़त्म करना है तो। हमारे पास उदहारण है  हमारे महापुरुसो के "बुद्धा से बाबा साहेब आंबेडकर" तक जिन्होंने हज़ारो प्रताड़ना , अन्याय और व्यक्तिगत हार झेली लेकिन कभी उन्होंने अपने जीवन को आत्महत्या की तरह नहीं ले गए। उनके उदाहारण और विचार हमें हर प्रकार के अन्याय और हार में हमें मज़बूत बनाते है।
हम दबे कुचले है और अन्याय तथा हार हमारी जीवन के हिस्से है इसलिए इनसे लड़ने के लिए हमें जीना होगा और अंतिम सांस तक लड़ना होगा।

और दूसरी बात मेरे उन होनहार स्टूडेंट्स के लिए- कि कैंपस जैसे एरिया में अकेले लड़ाई लड़ना मतलब दबाने वाले मनुवादियो को शोषण के लिए पूरा मौका देना होगा।

इसलिए हमें जरूरत है एक राष्ट्रव्यापी मज़बूत आन्दोलन जो कि SC/ST/OBC और धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यको से समाहित हो और फुले अम्बेडकरी विचारधारा से परिपूर्ण हो। जिनकी जड़े एक मज़बूत रचनात्मक संगठन और जिसके साथ मज़बूत राष्ट्रव्यापी सामाजिक-राजनैतिक संस्थाए जुडी हो।  मूलनिवासी संघ ने बहुत जल्द ऐसा प्लेटफार्म बनाने का प्रण किया है।  अब हम अपने स्टूडेंट्स को इस ब्राह्मणी प्रशाशन से प्रताड़ित नहीं होने देंगे।

ब्राह्मणी व्यवस्था से लड़ने के लिए एजुकेशन बहुत आवश्यक है।

जय भीम जय मूलनिवासी।

अंगूठा काटने वाले अब गला काटने लगे

अंगूठा काटने वाले अब गला काटने लगे
***********************************
रोहित वेमुला की मौत का जिम्मेवार युनिवर्सिटी में फैला हिन्दू आन्तकवाद है। रोहित वेमुला व उसके पांच साथियों को इसलिए सस्पेंड
कर दिया गया कि उन्होंने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में
आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन बनाई थी,
उन्होंने अम्बेडकरवाद का प्रचार किया था ,
हिन्दू मान्यताओ का बहिष्कार किया था,
उनके फैले भगवा पाखण्ड की मानने से ईनकार कर दिया था ,
इसी कारण वेमुला और उसके चार अन्य साथियो का होस्टल से
बहिष्कार कर दिया गया था।
मतलब की अब क्या अँगूठा काटने वाले गला काटने लग गये ।
अगर यहा दलित की बजाए किसी सवर्ण छात्र की हत्या हुई होती तो ये हिन्दू आतंकवादी प्रशाशन संग पंचायत बनाके आरक्षण की डाल को काटने की योजना बना रहे होते और सैकड़ो जांच कमेटिया बन चुकी होती ।
अगर हम अब भी संगठित नही हुए तो वे युही न जाने कितने रोहित वेमुला जैसे साथियो को रोज़ मारते रहेंगे।
# जयभिम

मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकरवादी

अच्छे दिन ,,,,
बांमनो के (bJP के) राम राज्य मे बहुजनो के अच्छे दिन ,,,,,
आखिरीकार मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकर वादी को ,,,,,,
"दो सप्‍ताह पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के हॉस्‍टल से निकाले गए पांच दलित PHD  छात्र (शोधार्थियों ) में से एक रोहित वेमुला ने रविवार को खुदकुशी कर ली। उसका शव कैंपस के एक हॉस्‍टल में पंखे से लटका मिला। वह पिछले कई दिनों से अपने निष्कासन के खिलाफ खुले में सो रहा था। "
साइबराबाद पुलिस आयुक्त सीवी आनंद ने बताया, करीब 26 वर्षीय रोहित वेमुला का शव हॉस्‍टल के कमरे में फांसी से लटका मिला। पिछले साल अगस्त में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) द्वारा निलंबित किए गए पांच शोधकर्ताओं में से वह एक था।
अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े इन दलित छात्रों को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक नेता पर कथित हमले के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने छात्रावास से निष्‍कासित कर दिया गया था।यहां तक कि विश्‍वविद्याालय के हॉस्‍टल, मैस, प्रशासनिक भवन और कॉमन एरिया में भी इनके घुसने पर रोक लगा दी गई थी। दलित छात्रों के इस 'बहिष्‍कार' के खिलाफ कई छात्र संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और इस मुद्दे पर विश्‍वविद्यालय में काफी दिनों से विवाद चल रहा था। रोहित समेत पांचों छात्र अपने निष्‍कासन के खिलाफ कई दिनों से कैंपस में खुले आसमान के नीचे सो रहे थे। 
मिली जानकारी के अनुसार, रविवार को एक तरफ जहां दलित छात्रों के समर्थन में कई छात्र संगठनों का धरना चल रहा था, रोहित चुपके से यूनिवर्सिटी के एनआरएस हॉस्‍टल गए और खुद को एक कमरे में बंद कर खुदकुशी कर ली। बताया जाता है कि इससे पहले रोहित की विरोधी गुट के छात्रों के साथ तीखी बहस हुई थी। पुलिस के मुताबिक, रोहित के पास से पांच पन्‍नों का एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है। 
रोहित की खुदकुशी के लिए अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन ने विश्‍वविद्यालय प्रशासन के रवैये को जिम्‍मेदार ठहराया है। इस बीच, कैंपस में तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई। रोहित की मौत से आक्रोशित कई छात्र संगठनों ने उसके शव को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया और भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्‍तात्रेय के खिलाफ एससी-एसटी उत्‍पीड़न का मामला दर्ज करने की मांग की। अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन का आरोप है कि बंगारू दत्‍तात्रेय ने ही इन दलित शोधार्थियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था।    
छात्र संगठनों ने किया बंद का आह्वान 
दलित छात्र की खुदकुशी के खिलाफ एसएफआई, डीएसयू, एआईएसएफ समेत कई छात्र संगठनों ने राज्‍य व्‍यापी बंद का आह्वान किया है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता का नाम आने से दलित छात्र की ख़ुदकुशी का मुद्दा और ज्यादा गरमा सकता है।

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हम सब गुनाहगार हैं.
रोहित वेमुला की हत्या बेशक आधुनिक युग के द्रोणाचार्यों यानी प्रोफेसरों ने की है, लेकिन उसके खून के छींटे हम सबके बदन पर हैं.
हम तो जानते थे कि RSS ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पांच छात्रों का सामाजिक बहिष्कार सुनिश्चित कराया है. हॉस्टल से निकाले गए ये बच्चे खुले में रातें बिता रहे थे. उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी थी. उनका करियर तबाह हो रहा था. परिवार से कितने तरह के दबाव आ रहे होंगे.
हम और आप, जी हां आप भी, और हम भी, यह सब बातें जान रहे थे. पर हम रोहित को कहां बचा पाए?
हम तो इंसानियत और न्याय के पक्ष में थे.... फिर हम क्यों हार गए रोहित?
एकलव्य यह देश शर्मिंदा है
द्रोणाचार्य अब तक जिंदा है!
=================:::::=====
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के होनहार दलित छात्र Rohith Vemula की आत्महत्या ने हम सबको हिलाकर रख दिया है। देश भर के विश्वविद्यालयों में आज भी मनु के औलाद भरे पड़े हैं। अब समय आ गया है कि इनसे निपटने का नया तरीका ढूँढा जाए। इनको इन्हीं की भाषा में समझाने का समय अब आ गया है, वर्ना निर्दोष दलित-आदिवासी छात्र ऐसे ही बेमौत मरते रहेंगे और मनु के औलाद फलते-फूलते रहेंगे। रोहिथ की कुर्बानी को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे। बाबासाहेब, आज हम शर्मिंदा हैं ! देश में अभी मनुवाद-जातिवाद ज़िंदा है। अब आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। आपसी मतभेद भुलाकर सारे वंचित एक हों- इसकी जरूरत आज सबसे ज्यादा है, तभी रोहिथ को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँगे।

जयभीम जयभारत ॥
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साहब डा अंबेडकर ने अछूतो के लिए दलित शब्द का विरोध किया था

शायद ज़्यादातर लोगो को यह बात पता नहीं है कि बाबा साहब डा अंबेडकर ने अछूतो के लिए दलित शब्द का राउंड टेबल कान्फ्रेंस मे विरोध किया था तब ब्रिटिश सरकार ने अछूतो के लिए नया शब्द अनुसूचित जाति रखा । बाकी क्या कहना आप लोग खुद होशियार है और अंबेडकर वादी भी है ही। अछूत कौन और कैसे पुस्तक की प्रस्तावना मे बाबा साहब ने लिखा है कि अछूतो को Depressed Classes का नाम अंग्रेज़ो द्वारा दिया गया। what congress and Gandhi have done to Untouchables पुस्तक के पेज संख्या 306-308 पर Appendix-II दी गयी है। जो कि डॉ भीमराव आर अम्बेडकर और राव बहादुर आर श्रीनिवासन द्वारा अछूतो के विशेष प्रतिनिधित्व के दावे के लिए राउंड टेबल कांफ्रेस को डिप्रेस्ड क्लासेस के तरफ से लिखित मांग अनुपूरक ज्ञापन के रूप मे दी गयी की मूल प्रतिलिपि है। इसमे बाबा साहब ने चौथी लिखित मांग रखी कि अछूतो को Depressed Classes के नाम के स्थान पर किसी अन्य सम्मानजनक नाम से पुकारा जाय। उनकी बात मान कर ही गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 मे अछूतो के लिए नया शब्द अनुसूचित जाति रखा गया। Appendix-II का संबन्धित 4th पार्ट as it is हिन्दी एवं English भाषा मे आप लोगो के जानकारी के लिए reproduce किया जा रहा है।

Appendix-II

POLITICAL SAFEQUARDS FOR DEPRESSED CLASSES

Supplementary Memorandum on the claims of the Depressed Classes for Special Representation, submitted to the R, T. C, by Dr, Bhimrao R. Ambedkar and Rao.Bahadur R.
Sriniwasan

Ref: Dr Baba Saheb Writing and Speeches Vol. 9, Page no 304-306, Book – what congress and Gandhi have done to Untouchables

दलित वर्ग के लिए राजनीतिक सुरक्षा
दलित वर्ग के विशेष प्रतिनिधित्व के दावे के लिए राउंड टेबल कांफ्रेस को डॉ भीमराव आर अम्बेडकर और राव बहादुर आर श्रीनिवासन द्वारा प्रस्तुत अनुपूरक ज्ञापन

(4) NOMENCLATURE

In dealing with-this part, of the question we would like to point out that the existing nomenclature of Depressed Classes is objected to by members of the Depressed Classes who have given thought to it and also by outsiders who take interest in them. It is degrading and contemptuous, and advantage may be taken of this occasion for drafting the new constitution to alter for official purposes the existing nomenclature. We think that they should be called "Non-Caste Hindus," "Protestant Hindus," or "Non-Conformist Hindus," or some such designation, instead of "Depressed Classes." We have no authority to press for any particular nomenclature. We can only suggest them, and we believe that if properly explained the Depressed Classes will not hesitate to accept the one most suitable for them. We have received a large number of telegrams from the Depressed Classes all over India, supporting the demands contained in this Memorandum.
Nov. 4th 1931.
( 4) नाम
सवाल के इस हिस्से को हल करते हुये हम यह बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि, दलित वर्ग का जो मौजूदा नामकरण है उस पर दलित वर्ग के सदस्यों, जिन्होने ने इस पर चिंतन मनन किया है एवं बाहरी लोगों जो उनमे रुचि लेते हैं को इस नाम पर आपत्ति है। यह अपमानजनक और तिरस्कारपूर्ण है, और मौजूदा नामकरण मे परिवर्तन करने के लिए नए संविधान का मसौदा तैयार करने के शासकीय प्रयोजन के इस अवसर का लाभ लिया जा सकता है। हमे लगता है कि उन्हे "दलित वर्ग" कहने के बजाय "नॉन कास्ट हिंदु," " प्रोटेस्टेंट हिंदू," या "नॉन कंफ़मिस्ट हिंदु," या ऐसे किसी दूसरे नाम से कहा जाना चाहिए। हमे किसी विशेष नामकरण के लिए दबाव देने के लिए कोई अधिकार नहीं है। हम केवल उन्हें सुझाव दे सकते हैं, और हम मानते है कि यदि दलित वर्ग को ठीक से समझाया तो वे अपने लिए सबसे उपयुक्त एक नाम स्वीकार करने में संकोच नहीं करेंगें।
हमे इस ज्ञापन में निहित मांगों के समर्थन में भारत भर से दलित वर्ग से एक बड़ी संख्या में टेलीग्राम प्राप्त हुये है।

4 नवंबर 1931
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बाबा साहब के परिनिर्वाण के उपरांत किसी योग्य नेतृत्व के अभाव मे अछूत जतियों को हरिजन और पंचमाज कहने वाले गांधी जी के शिष्य बाबू जगजीवन राम जी ने अनुसूचित जाति को उसके संवैधानिक नाम के स्थान पर दलित वर्ग कह कर संबोधित किया। उन्होने दलित वर्ग संघ की स्थापना की। बाद मे महाराष्ट्र के कुछ लेखको ने इस शब्द को आगे बढ़ाया। हरिजन या दलित के रूप मे अनुसूचित जाति की पहचान, एक अपमान जनक पहचान है इस लिए इस पहचान को छोड़ना होगा। बाबा साहब ने शैड्यूल कास्ट फ़ैडरेशन का गठन किया था। बाद मे उन्होने आरपीआई बनाने की पूरी योजना बनाई जिसमे की वो अदर बैकवर्ड क्लास (ओबीसी) को भी शामिल करना चाहते थे। बाबा साहब का मत था कि आजादी के बाद अनुसूचित जाति और अन्य पछड़ी जाति(ओबीसी) एक दूसरे के बिना अधूरे है और दोनों मिलकर ही आंदोलन चला सकते है और राजनैतिक सत्ता भी प्राप्त कर सकते है। नानक चन्द्र रत्तू जी को पढे। (Last 25 Years with Dr Ambedkar)। बाबा साहब ने दलित शब्द नहीं इस्तेमाल किया। जिन्हे बाबू जगजीवन राम जी का अनुयाई बनना है उन्हे दलित शब्द मुबारक पर जिन्हे बाबा साहब, तथागत बुद्ध, मान्यवर कांशी राम एवं डी के खापर्डे साहब का अनुयाई बनना है उन्हे बैकवर्ड क्लास(अनुसूचित जाति/जन जाति अन्य पिछड़ी जाति) , बहुजन, बुद्धिस्ट एवं मूलनिवासी बहुजन ही बोलना होगा। अनुसूचित जाति/जनजाति ब्राह्मणवादी व्यवस्था का दुःख भोगी(Sufferer) है वही अन्य पिछड़ी जाति (OBC ) सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) है. मान्यवर कांशी राम कहते थे की संगठन हमेशा दुःख भोगी(Sufferer) और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) का बन सकता है. शोषित और शोषक का संगठन कभी नहीं बन सकता है. देश में जब भी दुःख भोगी(Sufferer) और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) का ध्रुवीकरण एक साथ होने लगता है तो ब्राह्मणवाद का सिंघासन हिलने लगता है. और फिर सिंहासन बचाने के लिए वे नया ब्राह्मणी षड़यंत्र तैयार करते है जिससे की अन्य पिछड़ी जाति (OBC) और अनुसूचित जाति/जनजाति ध्रुवीकरण को रोका जा सके और उनके बीच दुरी और नफ़रत को बढाया जा सके. दलित शब्द दुःख भोगी(Sufferer) अर्थात SC और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) अर्थात OBC इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक का एक साथ ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को रोकता है। अन्य पिछड़ी जाति (OBC ) के लोग अपने को कभी भी दलित पहचान के साथ नहीं जोड़ना पसंद करेंगे। इस लिए मान्यवर कांशी राम साहेब ने बहुजन पहचान के साथ 6743 जातियों में बिखरे लोगो को इकठ्ठा किया। इसी बहुजन पहचान को और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से और मजबूत करने के लिए मूलनिवासी बहुजन पहचान पर लोगो को संगठित किया जा रहा है।
जय भीम- जय मूलनिवासी 
MC Jatav 

आरक्षण की जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती है

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सादर प्रणाम 
साथियों ,
आजकल कुछ कथाकथित विद्वान एवं मिट्टी के शेर चारों तरफ़ चिल्लाते /चीखते घूम रहे हैं कि आरक्षण समाप्त होना चाहिये इससे प्रतिभा का हनन हो रहा है ,आरक्षण का आधार जाति नहीं आर्थिक होना चाहिये ?इस आरक्षण रूपी जंजीर के बाँधने से गधे धोड़ों से आगे रेस में निकल रहे हैं ,जो बहुत बड़ा ही अन्याय है !-
तो मित्रों प्रश्न बहुत बड़ा है इसलिये इसके प्रत्येक खंड पर विचार किया जाना चाहिये !-:
मेरा इस विषय में कहना है कि आरक्षण कोई महज सात दशक पुराना नहीं ,जिसकी शुरुआत 1947के बाद मानी जाती है !यदि कुछ लोग ऐसा मानते हैं तो निसंदेह वह बहुत बड़े बेवक़ूफ़ और अज्ञान हैं !इसलिये इस विषय पर बोलने से पहले उन्हे ठीक से भारत के इतिहास का अध्ययन करलेना चाहिये !
               आरक्षण बहुत पुराना है जिसकी जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती हैं ,जिसे "मनु "जैसे पाखंडी और मनुष्यता के दुश्मनों ने लागू क्या !ऐसे धूर्त और मक्कारो ने भारतीय जनमानस को पहले वर्गों में बाँटा तत्पश्चात आरक्षण का प्रावधान किया !ब्राह्ममण के लिये 100%शिक्षा में आरक्षण ,क्षत्रियों के लिये युद्ध शिक्षा व शासन में 100%आरक्षण ,वैश्य के लिये व्यापार में शतप्रतिशत आरक्षण और चौथे एवं अंतिम वर्ग को इन तीनो वर्गों की सेवा यानी गुलामी का आरक्षण !
दोस्तो यह आरक्षण सन् 1947ई .तक यथावत एवं उसके बाद थोड़े से बदलाव के साथ अनवरत रुप से आज भी जारी है !लेकिन मजे की बात ये कि इन 5हजार वर्षोके दौरान इस खुली गुंडा-गर्दी के खिलाफ़ किसी भी विद्वान ने आवाज़ उठाने की हिमाकत नहीं की ?जिस चौथे वर्ग ने इन तीनो आरक्षित वर्गों की पाँच हजार वर्ष तक गुलामी की ,इनके मरे हुए पशुओं को ढोया ,इनके कपड़े साफ़ किये ,इनके खेतों की जुताई की ,इनके लिये शीतल जल हेतु मिट्टी के घड़े तैय्यार किये ,इनके विश्राम हेतु चारपाई तैय्यार की ,यहाँ तक कि इनके मलमूत्रों को सिर पर ढोया ! तब इस अत्याचार के खिलाफ़ किसी समाज सुधार का ध्यान क्यों नहीं गया ?और आज स्वतंत्र भारत में उनके जीवन में सुधार एवं उनन्यन व समृद्धि हेतु संविधान में कुछ थोड़े बहुत प्रावधान क्या किये इनके लिये आफत आगई ?ये विरोध पर उतारू हो गये ? तुमको शर्म भी नहीं आती ?अरे बईमानों ये आरक्षण की अवधारणा हमारी नहीं ,अपितु तुम्हारे कथाकथित मनीषियों की थी जो किसी भी कीमत पर इसे बनाये रखना चाहते हैं ? तुम  गधे और घोड़े की बात करते हो ?जंजीर बाँधने की बात करते हो ?तो सुनो ये जंजीर बाँधने का काम भी ,तुम्हारी षणयंत्रकरी योजनाओं का ही हिस्सा है ,अन्यथा आरक्षण का पुजारी महा भारत का द्रोणाचार्य एकलब्य जैसे वीर के हाथ का अँगूठा छल से काट कर ,एक घोड़े के पैरों में जंजीर बाँध कर ,उस अर्जुन जैसे गधे को आगे नहीं करता ? ऐसी प्रपंच युक्त एवं षणयंत्रकरी योजनाओं से इतिहास भरा पड़ा है !और बात करते हो जंजीरों की ,बात करते हो अन्याय की तुन्हे लज्जा नहीं आती ?"थू " तुम्हारी इस घिनौनी एवं घृणित दकियानूसी सोच पर !ये छल और प्रपंच तो तुम और तुम्हारे देवता ही कर सकते हैं !जो रात में ब्रह्म मुहूर्त के दौरान जब किसी स्त्री का पति स्नान के लिये बाहर जाता है ,तो इनके देवताअँधेरे का लाभ उठाकर उस स्त्री के छद्द्म पति के रुप में उसके साथ धोखा कर जाते हैं ,उसके साथ सम्भोग कर जाते हैं ,और उसके पति के आने से पूर्व नदारद भी हो जाते हैं ,जब तुम्हारे देवताओं का ये हाल रहा है तो तुम जैसे साधारण लोगों की क्या हालात होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ?अरे जितना नीच काम आपके देवता करते थे उतना तो गुण्डे और बदमाश भी नहीं कर सकते करते ?जिन्हे अपनी योग्यता का सही से आंकलन नहीं वो दूसरों को गधा बताने का प्रयास करते हैं ?
यही नहीं धरम के नाम पर आज भी ब्राह्मणों का 100%आरक्षण है ,मंडलेश्वर ,महा मंडलेश्वर ,पीठाधीस्वर एवं शंकराचार्य जैसे धार्मिक पदों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्राह्मण ही विराजित होते हैं ,पर ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता क्यों ?क्या चमार ,धोबी ,पासी ,वर्मा ,यादव आदि इसके योग्य नहीं या फ़िर इन जातियों का काम सिर्फ़ ब्राह्मणों की जूतियाँ उठाना मात्र् है ?
आज भारत के मंदिरों से 80 हजार करोड़ सालाना होने वाली आय को आरक्षित ब्राह्मण ही डकार जाता है ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता ?
यदि बात की जाती है जातिगत आरक्षण की तो ये जातियां बनाई किसने उसने जो आज भी इसके नाम पर पग-पग पर अपमानित होता है ?या उसने जो इसके नाम पर अपनी झूठी श्रेष्ठता केआधार पर हजारों सालों से मुफ्त की रोटियाँ तोडता आया है ?ए आरक्षण कोई खैरात में नहीं मिला है उस खून  पसीने की कमाई का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे तुम जैसे तुच्छ सोच वाले इंसानों ने दबा कर रखा है जिसकी दम पर आज गधे और घोड़े की बात करते हो ?
आज तमाम आंकड़े बताते हैं कि भारत में महज 5%लोगों के पास उसकी कुल सम्पत्ति का 95%हिस्सा है और 95%लोगों के पास मातृ 5%!ए 5%वही लोग हैं जो आरक्षण का विरोध करते है?उसे समाप्त करने की वकालत करते हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले उस 95%सम्पदा का बँटवारा होना चाहिये जिसे 5%लोग दबाये बैठे हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले "आर्थिक जातिगत "जनगणना होनी चाहिये ?आरक्षण समाप्त करने से पहले ये बताना होगा कि विदेशों में जमा काला धन किस जाती के लोगों का है ?आरक्षण समाप्त करने से पहले देश में घोटले बाज नेताओं की जाती का खुलासा करना होगा जिससे पता तो चले कि आरक्षण का विरोध करने वाले देश का कितना भला चाहते हैं ?आरक्षण समाप्त करने से पहले नाम के पीछे से सर नेम हटाना पड़ेगा ?और आरक्षण समाप्त करने से पहले उच्च जातियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने होंगे ,जातिवाद को जड़से समाप्त करना होगा ?
आरक्षण विरोधी अपने आप को ज्यादा काबिल समझते हैं तो जब इस देश को हुण ,कुषाण ,मंगोल ,यूनान ,तुर्क ,मुगल और अंगेजों ने बारी -बारी से गुलाम बनाया ,तब इनकी काबिलियत क्या घास चरने गयी थी ?
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यदि आरक्षण विरोधियों की सुविधायें आरक्षण समर्थको के बराबर करदी जायें तो घोड़े के बात तो छोड़ो इनकी औकात सूअर जितनी भी नहीं रहेगी ?
आरक्षण समाप्त करने से पहले हर जगह शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,रेल,बेंक एवं विधुत का राष्ट्रीयकरण करना होगा ?हर जगह से निजीकरण समाप्त करना होगा ?आरक्षण समाप्त करने से पहले जल ज़मीन और जायदाद का बँटवारा भारत की जनता में समान रुप से करना होगा ?
यदि इससे पहले आरक्षण समाप्त हुआ तो सारा भारत निसंदेह ग्रह युद्ध की आग में दहक उठेगा !और तब उस युद्द को नियंत्रित करने के लिये भारत को नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ को कर्फ्यू लगाना पड़ेगा ,जिसकी जिम्बेदार स्वम भारत सरकार होंगी ?
परंतु फिलहाल ऐसा हम होने नहीं देंगे ,क्योंकि हमें अपने देश से प्रेम है !!
धन्यवाद !
दीपक कुमार (एडवोकेट)
आज़मगढ़।।

कृपया इस मेसेज को अधिक से अधिक फैलायें ताकि आरक्षण का विरोध करने वालों की समझ में आये कि आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है !और उनके प्रश्न का सही जवाब भी उन्हे मिल सके !!

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